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तेरी बेवफ़ाई छुपाई भी नहीं जाती ।।

लगी थी जो आग अब बुझाई भी नहीं जाती , ईंटे पक गई है , दीवार अब ढहाई भी नहीं जाती । क्या लगाते मलहम उनके जलों पर हम , मुझसे तो अब आग लगाई भी नहीं जाती ।। सुकून मिलता गुजरती नज़रें इब्तिसाम से उसकी , कम्बख़त अब तो नज़र उठाई भी नहीं जाती ।। मिरे हालों पर उन्हें ज़रा भी इज्तिराब नहीं , बात अब तो उनसे बताई भी नहीं जाती ।। बादलों ने तो पूरा चांद ही छुपा रखा है , इक मुझसे तेरी बेवफ़ाई छुपाई भी नहीं जाती ।।

एक किताब हमारे दिल की भी है

एक ज़माना था कि था ज़माना साथ मेरे , आज पूरे शहर में भी कोई यार ही नहीं । एक किताब हमारे दिल की भी है , कम्बख़त कोई पढ़ने को तैयार ही नहीं । डूबा था कई रोज़ पुरानी शराब के इक बादिया में मगर , उससे ज्यादा किसी में खुमार ही नहीं । शहजादी थी वो मेरी मेरे लिए लेकिन , मै उसकी खातिर उसका शहरयार ही नहीं । अब वो परवाह नहीं करती तो ना सही , वो भी परवाह ना करे फिर परवरदिगार ही नहीं । वो शादी से पहले सब नापाक समझती थी , मेरे साथ तो ऐसा कोई इकरार ही नहीं । वो खिलौना समझ इधर उधर रख देती थी  , मुझे भी उसकी इस हरकत पर गुबार ही नहीं । और तिरी मोहब्बत का सिरदर्द पालती क्यों ' अम्बर ' जब उसे तुझसे प्यार ही नहीं ।।

तेरी ज़ुबां बहुत है ।

तेरी खामोशी के लफ़्ज़ निहां बहुत है , हर मुस्कुराहट के पीछे ये दिल परेशां बहुत है , न'अश समझ कर तुम दफनाने चली हो , बुलाओ तो सही अभी जां बहुत है । तेरे गालों को चूमने का अफसोस नहीं मुझको , तेरे अश्क ही गिरां बहुत है । मेरी जान के लिए हथियार की ज़रूरत क्या है , इसके खातिर तेरी ज़ुबां बहुत है । निकाल रहे हो हर एक कील आहिस्ते से मगर , ज़रा गौर करो अभी निशां बहुत है । दरीचे पे ही आकर मिल लिया करो मुझसे , तेरे द्वार पर निगाहबां बहुत है । कोई किरायेदार है तो रहने दो उसे , मेरे लिए खाली मकां बहुत है ।।

कह दिया है इश्क़ है ।।

तुमने उससे दिल लगाकर कह दिया है इश्क़ है , तुमने मेरा दिल जलाकर कह दिया है इश्क़ है , तुम हो वही ना जो कहती कभी थी कि क्या आजमाना इश्क़ में , तुमने मुझको आजमाकर कह दिया है इश्क़ है । ज़ख्मी हथेली से तेरे उस रोज़ थामे हाथ जो , हाथ वो तुमने छुड़ाकर कह दिया है इश्क़ है । आज तलक सामने जिसके पलकें तुम्हारी झुकी नहीं , आज उसी से नज़रे चुराकर कह दिया है इश्क़ है । जो था दिया मैंने तुम्हे एक गाल पर बोसा कभी , आज सब तुमने भुलाकर कह दिया है इश्क़ है । बे अदब और कटुता भूले थे तेरे लिए , तुमने सब याद दिलाकर कह दिया है इश्क़ है । किस ज़ुबां से है वफ़ा कहोगी अब ए मेरी दिल्लगी , उससे जब तुमने मुस्कुराकर कह दिया है इश्क़ है । जिसके खातिर ठोकरें 'अम्बर' दर दर खाते रहे , उसने भी ठुकराकर कह दिया है इश्क़ है ।।

देख वो मेरा जान ए बसर आया है

जो छुपा था शर्माकर बादलों में कहीं अब निकल वो क़मर आया है , चकरोड़ें अब खामोश पड़ने लगी शायद उससे मिलने का पहर आया है , अब छेड़ो तराना दूसरा कोई यार मेरे , उसकी बातों से मेरा गला भर आया है । मेरे आने से वाक़िफ नहीं मिरी दिल-नशीं शायद , इत्तला कर दो उसे की मिलने उसका मुन्तजिर आया है । उसके पासबानों की इज्ज़त करके जिए अब तक , कह दो वो होकर उन सबसे बेखबर आया है । दिल के इक कोने में उसने छिपाकर रखा था जिसे , अब जाकर कहीं उसकी आंखों में वो नज़र आया है । एक आखिरी मुलाकात पर बोसा का इकरार हुआ , खिज़ा साथ होने का ये सफ़र आया है । छोड़ गए थे जिसे बिखरते हुए हम कभी , नज़रे खुली तो देखा वही बिखरा हुआ घर आया है ।           मुरझाए चेहरे खिलखिला कर बोल उठे , देख वो मेरा जान - ए - बसर आया है । जो टूट कर आसमां में गुम हो जाया करते है , देख वो टुकड़ा लौट कर आया है । कुछ खामोश , कुछ गुमशुदा-सा है तो रहने दो उसे , वो हलक से पीकर मोहब्बत का ज़हर आया है । 

बुझा गया कोई हर प्यास अब मेरी प्यास कहां तुझमें

इजाज़ - ए - वक़्त का ही हश्र है कि वो इख्लास कहां तुझमें , बुझा गया कोई हर प्यास अब मेरी प्यास कहां तुझमें । गश - ए - इश्क़ में हम यहां अब तल्ख़ ना होश आया है , वो खुश है अभी तुझसे नया जो जौक़ पाया है । जो बातें ही नहीं हुई वो वजह तर्क - ए - तअ'ल्लुक की , जिसकी मुन्तजिर तू थी वो शायद लौट आया है । खियाबां के सारे फूल ये देख मुरझा गए , भंवर इकलौता मिलने सिर्फ जो तुझसे आया है । तब्सिरा करके तुझे बदनाम क्या करते , तेरी बेवफाई ने ही तुझे बदनाम करवाया है । जो रहने पर थी ज़िंदा वो मेरा एहसास कहां तुझमें , बुझा गया कोई हर प्यास अब मेरी प्यास कहां तुझमें ।। मेरी नर्गिस के चर्चे हर जगह बेशुमार हो गए , जो दीदार कर बैठे वो तलबदार हो गए , लुटाते दौलतें क्या देख तेरे रुख्सार की लाली , झुकी पलकें तेरी हम तेरे कर्जदार हो गए । कभी थी छपी तस्वीर तेरी कोरे कागज़ पर , सुना है आज के वो दौर में अख़बार हो गए । जिन्हे रौनक - ए - गुलशन के कोमल फूल समझे थे , वो बनकर तीर नाफ़िज दिल के पार हो गए । जो दी थी मुस्कुराकर अब बची वो सांस कहां तुझमें , बुझा गया कोई हर प्यास अब मेरी प्यास कहां तु

बस अपनों पर यहां कीचड़ उछल जाएगा ।।

ख़िज्र-ए-इश्क़ है दिल में निकल जाएगा , अभी नादान है वो संभल जाएगा , ताबिश-ए-हुस्न को ढक कर रखो , ये दिल मोम है फिर पिघल जाएगा । किस्सा-ए-इश्क़ में सांस बाकी है , अभी थोड़े ही धूल में मिल जाएगा । तेरा हुस्न जो जाज़िब था कभी , ये उम्र के साथ है ढल जाएगा । ये " फिर कभी " का सिलसिला ना दोहराओ , अब वो वक़्त नहीं जो टल जाएगा । ये दिल मेरा है तुम्हारा थोड़े है , जो किसी और पर मचल जाएगा । हिज्र-ए-इश्क़ अब और सहन होता नहीं , कोरे पर पैर है फिसल जाएगा । इस्त्रार करके सामने क्या इजहार करते , जब इल्म था कि हो कत्ल जाएगा । जा'इ का खौफ है नहीं ' अम्बर ' बस अपनों पर यहां कीचड़ उछल जाएगा ।।

तुम्हारे होंठ पर वो तिल बहुत ही कातिलाना है ।।

अब अपनी मुस्कुराहट से फिर किसको लुभाना है , फिर झुकी पलकों से किसका दिल जलाना है , समय साथ था तब भी और वो आज भी है पर , इत्तिका थी कभी तुम आज मय का ज़माना है । आओ जो शौकीन है पीने का बुला लो जिस जिसको भी पिलाना है , नशा भरपूर दर्द भी है ये दिलजलों का मयखाना है । पग लड़खड़ाए पर ये ज़ुबां ना लड़खड़ा जाए , पियो जितना आखिर लौट कर तो घर ही जाना है । जो तुम कहती रही "फिर कभी" मलाल इसी बात का होता  है  , जो खुद रखते नहीं शर्म फिर उनसे क्या शर्माना है । ज़िन्दगी में हर कज़ा मंज़ूर है लेकिन , ये मेरी ज़िन्दगी भी तेरी बेवफाई का अफ़साना है । थामों कंधो को तो फ़िर कभी ये हाथ ना कांपे , छूटे हाथ कैसे साथ ज़िन्दगी भर निभाना है । तेरी तारीफ़ क्या करूं जब दिल से दिल मिलाना है , तुम्हारे होंठ पर वो तिल बहुत ही कातिलाना है । कभी खुलती थी पलके तो तेरा दीदार होता था , आज फिर से कागज़ों में इन नज़रों को खपाना है ।।

कुछ भी ना लिखूं

यहां तन्हा - सा बैठा मैं ज़रा सोचूं की क्या लिखूं , पुराने ज़ख्मों की यादें या पुराने जख्म ही लिख दूं । देखा नजर में उनकी तो दौड़ चमक सी गई , लिखूं क्या मोहब्बतों की यादें या महबूब- ए - याद लिखूं । नजर गई उनके होंठ तो है थिलथिला रहे , लिखूं क्या उनकी तनहाई या तनहाई अपनी लिखूं । मोहब्बत ने दिया है सब मोहब्बत ने लिया है सब , लिखूं क्या दर्द - ए - इश्क़ पर या दर्द - ए - दिल लिखूं । बीत गया समय यही सोचते यारों , लिखूं क्या गुज़रे वक़्त पर या कुछ भी ना लिखूं ।।

कोई माखन लेकर आएगा ।।

उस गरीब की बस्ती में कोई उजियारा करने आएगा , वो कोई मोदी सोनिया नहीं ना गांधी ही कहलाएगा  । कैसे कर रही है रातें कैसे बीत रहे है दिन , उसकी दर्द कहानी को सुनने कोई आएगा । राह देख रहा है वो उनका जो वायदे करके गए है , उन वायदों को दोहराने फिर कोई नेता आएगा । कितने तो जीते है मिलकर मगर वो अकेला है बैठा , इस अकेलेपन को दूर करने कोई आएगा । दिल है उसका छोटा मगर गहराई है बहुत , उन भावना की गहराइयों में डूबने कोई आएगा । गम है उसको इसी बात का कोई दर्द सुनने आएगा , बेचारे शब्द से संबोधित करके काका ही बुलाएगा । कष्ट बहुत है उसको इस वक़्त करने की है चाह बहुत , उसके घाव भरने को कोई माखन लेकर आएगा । उसको कहते है सब रखलो मुझको अपने यहां , वो इस आस में बैठा है कि कोई नौकर ढूंढने आएगा । उसका आशियां बना ही कब था जो तोड़ने वाले आ पहुंचे , फिर कोई नेता काका कहकर उसका घर बसाएगा । यही है भारत के गांव की गाथा जो कहते मोदी आया है , वो दूसरों से क्या मिलेगा जो अपनों से ना मिल पाया है ।

क्यों ??

सांत्वना देते हुए यूं भाव विभोर हो जाते हो , टूटे हुए अंतरिम हृदय का अंदरूनी शोर हो जाते हो , खिलखिला चहकते हुए मुखातिब चांद से हो जाते हो , आंचल में पालने वालों से बेचलन व बोर हो जाते हो । गुरुमुखी के नाम पर द्रवित हृदय कर जाते हो , परिवार में सब एक छोर तुम दूसरा छोर हो जाते हो । आधुनिकता की धुंध में दूर अपनों से ही हो जाते हो , क्या प्रमाणित कर लिया जो खुद ही इतना मगरूर हो जाते हो । द्वार चौखट आलिंगनों पर खड़े जिनके सहारे हो जाते हो , उन्हीं को छोड़ बेसहारा दुनिया के लिए पैर हो जाते हो । कहां गलती हो गई कम्बख़त नज़रों से नजर मिलाते हो , क्यों छोड़ मां बाप को अपनी मेहबूब ओर हो जाते हो ।

शायद मुझको इश्क़ हो गया है

उसी की बातें रहती है ज़ुबां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है , तस्वीर ख्वाब में नजर आसमां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । नज़रों को पलको से यूं छुपाती है वो , चाहत हर पर नज़रों से दिखाती है वो , हूं फिदा उसकी नज़र - ए- कातिलां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । उसी खातिर अन्दर से धड़कता है दिल , उससे हर बार मिलने को तड़पता है दिल , हूं उसी के इश्क़ - ए - निशां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । डांट मेरे खातिर सुनती है वो , सेहरा प्यार का हर पल बुनती है वो , मुस्कुरा देता हूं उसकी खामियां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । हर परग कुछ सोच कर चलती है वो , अपनों से कुछ जान कर जलती है वो , रहता हूं उसके हुस्न - ए - दुकां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । नज़रों ने नज़रों से कह दिया है इश्क़ , दिल ने भी अब मान लिया है इश्क़ , लाना है बस दिल से ज़ुबां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । तोड़ बेड़ियां अब नहीं सहना है , है उसी से इश्क़ यह कहना है , है लाना उसको अपने आशियां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है ।।

फिर कभी

ठीक है, तुम रोज़ बातें ना करो मुझसे , लेकिन करती रहा करो मुझसे बातें कभी । बिन तेरे , बीत गई है रातें कई  , और बीत जाएंगी ये तारीखे कभी । वक़्त लंबा गुज़र गया है , आओ हम रूबरू हो जाए कभी । मिलने पर तुम कहा करती थी , अभी नहीं लेकिन "फिर कभी" । सुनाए क्या दास्तां हम उस रात की , बस एक थी आरज़ू वो मुलाकात की । ये ' फिर कभी' का सिलसिला थम ही गया होता , गर कद्र कर लेती तुम अपने जज्बात की । जब मारूफ हो अपने इश्क़ का दास्तां , तो एहतियाज नहीं इतने एहतियात की । ख़लिश रह गई थी एक सीने में , कि इद्राक थी तुझे मेरे हालात की । ख़िज़ां ना होती हमारे इश्क़ की कहानियां , लेकिन बद्तमीज़ी ही मैंने इफ्रात की । टकराई थी नज़रें जब कभी , टकराई थी सांसे जब कभी , कह दिया था तब भी तुमने मुस्कुरा कर , अभी नहीं लेकिन "फिर कभी" । फ़िर कई बोसे तेरे होठों पर , होगी जब सामने तुम कभी , अबकी मत कहना तुम मुझे , गाल छूने पर " फिर कभी "। एक बार वक़्त निकल जाने पर , लौट कर आएगा ये " फिर कभी " नहीं । आओ हो जाए हमसफ़र जिंदगी के राह में , वर्ना अभ

यह इक्कीसवीं सदी का भारत है

देश चरित्र कहां जा पहुंचा दुष्कर्मियों के सायों में , या सत्ता पर काबिज बैठे अपराधियों के छायों में । यह इक्कीसवीं सदी का भारत है पूजनीय गाय काटी जाती है , बंद कमरों में लाचारी वो औरत बांटी जाती है । ये कैसे नेता चुने गए जो महफ़िल में होया करते है , सात सितारा होटल में एसी में सोया करते है । वोट धर्म पर मांगे केवल जनता तो कबसे रूठी है , सत्तर सालों से शासित वो शासन सत्ता झूठी है । वर्ष कई बीते बस जनता को लूटा जाता है , अपराधी के साथ बैठ पीड़ित को सूता जाता है । आठ माह या आठ वर्ष उस बच्ची की क्या गलती है , निर्मम क्रूर उन हैवानों की हवस की भूख में जलती है ।

आओ बोल दे वो बातें जो कबसे ज़ुबां पे लाए बैठे है ।

एक दर्द है दिल में कबसे दबाए बैठे है  , इश्क भी उनसे कबसे जताए बैठे है , वो बाखबर हो कर भी बेखबर है , हम ही उनसे सारे वायदे निभाए बैठे है । हारे तो उसको पहले ही दिन थे यारों , लेकिन अब भी उसको इश्क़ में जिताए बैठे है । माना की वो सबसे खूबसूरत नहीं लेकिन , दिल तो हम अपना उनसे ही लगाए बैठे है । वो होठों के ऊपर तिल , और उसकी मुस्कुराहट , इन्हीं पर तो हम अपने होश गवाए बैठे है । और वो आंखों का काजल , जुल्फों का बिखरना , भीगे बालों पे तो उसके अपने दिल लुटाए बैठे है । अश्क भी उसकी यादों के साए में , इन आंखों पर कितने सितम ढहाए बैठे है । गाल पे उसकी इक बोसे की खातिर , यहां कितनों के हम दिल जलाए बैठे है । मिलता है उसके छुअन से सुकून मुझको , कबसे हम इन उंगलियों को तरसाए बैठे है । जानता हूं कि तुझको भी मिलता है सुकून बात करने पर , आओ बोल दे वो बातें जो कबसे ज़ुबां पे लाए बैठे है ।