तुम्हारे होंठ पर वो तिल बहुत ही कातिलाना है ।।
अब अपनी मुस्कुराहट से फिर किसको लुभाना है ,
फिर झुकी पलकों से किसका दिल जलाना है ,
समय साथ था तब भी और वो आज भी है पर ,
इत्तिका थी कभी तुम आज मय का ज़माना है ।
आओ जो शौकीन है पीने का बुला लो जिस जिसको भी पिलाना है ,
नशा भरपूर दर्द भी है ये दिलजलों का मयखाना है ।
पग लड़खड़ाए पर ये ज़ुबां ना लड़खड़ा जाए ,
पियो जितना आखिर लौट कर तो घर ही जाना है ।
जो तुम कहती रही "फिर कभी" मलाल इसी बात का होता है ,
जो खुद रखते नहीं शर्म फिर उनसे क्या शर्माना है ।
ज़िन्दगी में हर कज़ा मंज़ूर है लेकिन ,
ये मेरी ज़िन्दगी भी तेरी बेवफाई का अफ़साना है ।
थामों कंधो को तो फ़िर कभी ये हाथ ना कांपे ,
छूटे हाथ कैसे साथ ज़िन्दगी भर निभाना है ।
तेरी तारीफ़ क्या करूं जब दिल से दिल मिलाना है ,
तुम्हारे होंठ पर वो तिल बहुत ही कातिलाना है ।
कभी खुलती थी पलके तो तेरा दीदार होता था ,
आज फिर से कागज़ों में इन नज़रों को खपाना है ।।
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