फिर कभी
ठीक है,
तुम रोज़ बातें ना करो मुझसे ,
लेकिन करती रहा करो मुझसे बातें कभी ।
बिन तेरे , बीत गई है रातें कई ,
और बीत जाएंगी ये तारीखे कभी ।
वक़्त लंबा गुज़र गया है ,
आओ हम रूबरू हो जाए कभी ।
मिलने पर तुम कहा करती थी ,
अभी नहीं लेकिन "फिर कभी" ।
सुनाए क्या दास्तां हम उस रात की ,
बस एक थी आरज़ू वो मुलाकात की ।
ये ' फिर कभी' का सिलसिला थम ही गया होता ,
गर कद्र कर लेती तुम अपने जज्बात की ।
जब मारूफ हो अपने इश्क़ का दास्तां ,
तो एहतियाज नहीं इतने एहतियात की ।
ख़लिश रह गई थी एक सीने में ,
कि इद्राक थी तुझे मेरे हालात की ।
ख़िज़ां ना होती हमारे इश्क़ की कहानियां ,
लेकिन बद्तमीज़ी ही मैंने इफ्रात की ।
टकराई थी नज़रें जब कभी ,
टकराई थी सांसे जब कभी ,
कह दिया था तब भी तुमने मुस्कुरा कर ,
अभी नहीं लेकिन "फिर कभी" ।
फ़िर कई बोसे तेरे होठों पर ,
होगी जब सामने तुम कभी ,
अबकी मत कहना तुम मुझे ,
गाल छूने पर " फिर कभी "।
एक बार वक़्त निकल जाने पर ,
लौट कर आएगा ये " फिर कभी " नहीं ।
आओ हो जाए हमसफ़र जिंदगी के राह में ,
वर्ना अभी नहीं तो फिर कभी नहीं ।।
Asesome... keep it up.
ReplyDeleteJi dhanywad
DeleteNice dear
ReplyDelete