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Showing posts from March, 2021

जैसे शोहरतें मिली वैसे मुज़्महिल हुए

खुद के कत्ल के इल्ज़ाम में हम शामिल हुए , जज पैसा और वो सब हम-दिल हुए , जैसे जिसका काम था उस काम के काबिल रहे , उधर तुम हुई बेवफ़ा इधर हम ज़ाहिल हुए । इन नौकरियों ने बड़ा ज़ुर्म ढहा दिया , ये मुस्तक़िल हुई और हम मुंफ़सिल हुए ।। * मुस्तक़िल - स्थाई ,  मुंफ़सिल - जुदा/अलग खुमार-ए-जहान के रंग में तुम भी रंग गए , जैसे शोहरतें मिली वैसे मुज़्महिल हुए ।। * मुज़्महिल - थका हुआ या खाली ( exhausted )   तेरे शहर में इंसाफ कैसा चल रहा 'गुमनाम' ? ज़ुर्रत देखने की तुमने की और हम क़ातिल हुए ।।

प्रेम एक किरण क्या , प्रेम पूर्ण सूर्य है ।

प्रेम ही साध्या , प्रेम ही आराध्या , प्रेम पहेली क्या , प्रेम ही व्याख्या । प्रेम बाह्य संसार , प्रेम ही अंतरित , प्रेम ही आश्रय , प्रेम ही आश्रित । प्रेम विभक्त क्या , प्रेम ही सशक्त है , प्रेम पाश है नहीं , प्रेम बंधन मुक्त है । प्रेम एक रोग क्या , प्रेम ही योग है , प्रेम में वियोग क्या , प्रेम ही संयोग है । प्रेम अपराध क्या , प्रेम सत्कर्म है , प्रेम को धर्म क्या , प्रेम खुद धर्म है । प्रेम का संघार क्या , प्रेम व्युत्पत्ति है , प्रेम नास्तिक क्या , प्रेम एक भक्ति है । प्रेम पारस भी , प्रेम वैदूर्य है , प्रेम एक किरण क्या , प्रेम पूर्ण सूर्य है । प्रेम गमगीन क्या , प्रेम अशोक है , प्रेम अंधकार क्या , प्रेम आलोक है । प्रेम में अज्ञान भी , प्रेम में श्लोक है , प्रेम से कण भी , प्रेम ही त्रैलोक है । प्रेम जीव जंतु , प्रेम देव , इंसान है , प्रेम साधना भी , प्रेम खुद भगवान है ।

बीज जब बबूल का बोया जा रहा

धरोहरों को अपने संजोया जा रहा , निबाहों को साथ ही क्यों डुबोया जा रहा ? आंचल में आम कहां से आएगा , बीज जब बबूल का बोया जा रहा । लोग कह रहे थे की आग सिर्फ़ जलाती है , यहां तो उससे पाप को धोया जा रहा । हिज़्र की रात उसकी , सब जानते , फ़ुर्सत से बैठ कर जो रोया जा रहा ।

तुम्हारे मन में क्या - क्या और ख़्याल चल रहा

दिल और दिमाग़ में इधर बवाल चल रहा , तुम बताओ की तुम्हारा क्या हाल चल रहा , सात जन्मों तक तुम्हारा साथ निभाएंगे , आज कल फ़ोन पर ये मिसाल चल रहा । तैश दिखा रहे है वो पाव भर मांस से , कौन जाने किसके ख़ून में ऊबाल चल रहा । छः साल वस्ल की रात को कह रही , तुम्हारे मन में क्या - क्या और ख़्याल चल रहा । कौन किसकी तरह दिखना चाह रहा , दिख रहा कि शेर-सा शग़ाल चल रहा । हर तरफ़ हाय हाय की पुकार आ रही , इस वबा में बस इंतकाल चल रहा ।।

बस्ती में आग फ़िर किसने लगाई है

इश्क़ था हम से और हम से बेवफ़ाई है , तुम हो और ये प्यार बे-जाई है ,  *  बे-ज़ाई - हद से ज्यादा ज़ी रहे हैं हम तेरी यादों की तन्हाई में , इस तरह की जिंदगी में जीना हरजाई है । आओ उड़ के देख लो खुले आसमान में , आख़िरी उड़ान केवल रूह उड़ पाई है । तीन साल इश्क़ छः वस्ल में होने है , हमसे पूछो कैसे इतनी शामें बिताई है ।  *  वस्ल - मिलन सबके पास माचिस "गुमनाम" दीप जलाने को , बस्ती में आग फ़िर किसने लगाई है ।

जो जाएगा जरूर वो भूखा रहा होगा

हर अफसाना वक्त से धुंदलका रहा होगा , दिल तुम्हारी मेज़बानी में झुका रहा होगा , रसोई के किवाड़ खुले छोड़ जा रहे , जो जाएगा ज़रूर वो भूखा रहा होगा । तुम्हारे कान में दाने निकल आए है ज़रूर कोई कान में मेरे खिलाफ़ फूंका रहा होगा । चांद सालों बाद आने का वायदा कर गया , वो शम्स तब तक ढलने को रुका रहा होगा । ये जिंदगी की सिखाई सीख है गुमनाम , जो आज भीगा है कल सूखा रहा होगा ।।

गुमनाम जगाओ चेतना जहिमा ब्रह्म समाए ।

पहचान रंग की आंख से ईहां तो रंग भगवान , मदिरा मांस चलि रहा क्या हिंदू क्या मुसलमान ।। लोकतंत्र वह लोक जहां जनता की मलिकाए । ईहां रंग गद्दी दिलवाए रहा अऊ रंग सरकार गिराए ।। मनुष्य मन के रंग का घर सोचिन लिए पोताए । जग घूमन आए भट्टी में अऊ करिखा लेई लेई जाए ।। मनवा जईसन चाहि रहा दर्पण रहा दिखाए , चसमन खातिर पईस्वा झूठहिं फुंकि जाए ।। रंगन पर क्यों लड़त हो अंधेर भए जो बिलाए , गुमनाम जगाओ चेतना जहिमा ब्रह्म समाए ।।