तेरी बेवफ़ाई छुपाई भी नहीं जाती ।।

लगी थी जो आग अब बुझाई भी नहीं जाती ,
ईंटे पक गई है , दीवार अब ढहाई भी नहीं जाती ।

क्या लगाते मलहम उनके जलों पर हम ,
मुझसे तो अब आग लगाई भी नहीं जाती ।।

सुकून मिलता गुजरती नज़रें इब्तिसाम से उसकी ,
कम्बख़त अब तो नज़र उठाई भी नहीं जाती ।।

मिरे हालों पर उन्हें ज़रा भी इज्तिराब नहीं ,
बात अब तो उनसे बताई भी नहीं जाती ।।

बादलों ने तो पूरा चांद ही छुपा रखा है ,
इक मुझसे तेरी बेवफ़ाई छुपाई भी नहीं जाती ।।

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