बस अपनों पर यहां कीचड़ उछल जाएगा ।।
ख़िज्र-ए-इश्क़ है दिल में निकल जाएगा ,
अभी नादान है वो संभल जाएगा ,
ताबिश-ए-हुस्न को ढक कर रखो ,
ये दिल मोम है फिर पिघल जाएगा ।
किस्सा-ए-इश्क़ में सांस बाकी है ,
अभी थोड़े ही धूल में मिल जाएगा ।
तेरा हुस्न जो जाज़िब था कभी ,
ये उम्र के साथ है ढल जाएगा ।
ये " फिर कभी " का सिलसिला ना दोहराओ ,
अब वो वक़्त नहीं जो टल जाएगा ।
ये दिल मेरा है तुम्हारा थोड़े है ,
जो किसी और पर मचल जाएगा ।
हिज्र-ए-इश्क़ अब और सहन होता नहीं ,
कोरे पर पैर है फिसल जाएगा ।
इस्त्रार करके सामने क्या इजहार करते ,
जब इल्म था कि हो कत्ल जाएगा ।
जा'इ का खौफ है नहीं ' अम्बर '
बस अपनों पर यहां कीचड़ उछल जाएगा ।।
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