कुछ भी ना लिखूं

यहां तन्हा - सा बैठा मैं
ज़रा सोचूं की क्या लिखूं ,
पुराने ज़ख्मों की यादें
या पुराने जख्म ही लिख दूं ।
देखा नजर में उनकी
तो दौड़ चमक सी गई ,
लिखूं क्या मोहब्बतों की यादें
या महबूब- ए - याद लिखूं ।
नजर गई उनके होंठ
तो है थिलथिला रहे ,
लिखूं क्या उनकी तनहाई
या तनहाई अपनी लिखूं ।
मोहब्बत ने दिया है सब
मोहब्बत ने लिया है सब ,
लिखूं क्या दर्द - ए - इश्क़ पर
या दर्द - ए - दिल लिखूं ।
बीत गया समय
यही सोचते यारों ,
लिखूं क्या गुज़रे वक़्त पर
या कुछ भी ना लिखूं ।।

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