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Showing posts from 2022

एक खूबसूरत ज़ालिम रिश्तों में पड़ गया

बिना बात के ही वो मुझसे झगड़ गया , बिछड़ना चाहता था वो , सो बिछड़ गया , हर आंच बुझ गई हैं ताल्लुकातों की , एक खूबसूरत ज़ालिम रिश्तों में पड़ गया ।। रिश्तों सी फिसलन इन हाथ में न थी , गिरते हाथ थाम लेता मगर वो बढ़ गया ।। सुनाने आए थे किस्से वफ़ा के तेरे , वो दरख़्त हवा चलने से पहले उखड़ गया ।। गमज़दा होने की क्या अदाकारी की , ये दुःख ‘गुमनाम’ गले ही पड़ गया ।।

ध्यानी राजा

राज कार्य छोड़ एकांत में बैठ कर ध्यान कर रहे राजा दर्पण को जब ज्ञान की प्राप्ति हुई और यह जाना दुनिया में सत्कर्म की जगह बुरे कर्मों का बोलबाला क्यों हो रहा है तो वे सीधे वापस अपनी राजधानी लौट आए । राजा के राज्याभिषेक की घोषणा हुई और राजा को दुबारा गद्दी पे देखने के लिए जनता लालायित हो उठी और जिन्हें पिछली बार राजा में बुराई दिख रही थी वे भी इस बार राजा से प्रभावित होकर जन समर्थन का प्रदर्शन करने राजा के महल के बाहर पहुंच गए । पुनः राज्याभिषेक के बाद जब राजा का भाषण हुआ तो उन्होंने कहा कि लोगों के दुखों का कारण है दुखी होने के भाव और दुखी होने का शब्द , तो जिस शब्द से व्यक्ति दुखी होने के भाव को प्रकट कर पाए वो शब्द ही अगर शब्दकोश से निस्तारित कर दिए जाए तो लोगों के दुखों का अंत किया जा सकता है । राजा के भाषण के बाद कई विद्वान आए और शब्द की तलाश की गई और शब्दों को शब्दकोश से हटाया जाने लगा । चोरी , छीना झपटी , दुःख , पीड़ा , द्वेष , भ्रष्टाचार , भ्रष्टाचारी , छिनैती , डकैती , डकैत , चोट , चपेट , दर्द , पीड़ा , अन्य कई शब्दों को शब्दकोश से हटा दिया गया । लोग राजा के वापस आने पर बेहद प्र

हुक्मरान

गौ माता के संरक्षण के लिए ट्वीट किए एक नेता के घर में जब लोग गौ संरक्षण की सीख लेने पहुंचे तो चार विदेशी नस्ल के कुत्तों का संरक्षण होते मिला । नेता जी से मिलने के लिए ज्ञापन दिया तो नेता जी के पीए ने बताया नेता जी अभी ज़रूरी मीटिंग में व्यस्त है थोड़े ही देर में आपसे मिलने आएंगे । दो नौकर अलग से कुत्तों की सेवा में लगाए गए थे और भौंकने पर खुद नेता जी भागकर आते देखते , चूमते और दुलारने लगते । इतने में भीड़ में खुसफुसाहट शुरू हो गई और जब लोगों के कई घंटों तक इंतज़ार करने पर नेता जी लोगों के पास नही आए और थक जाने के बाद लोग वापस जाने लगे तो भीड़ से ही एक व्यक्ति बोला की हमने अपना हुक्मरान चुना और नेता जी ने अपना ।।

अंतर्कलह

मन में ही उठे अंतर्कलह को दबाने की चेष्टा में जब राम अधीर की एक त्योरी ऊपर हो गई तो कैमरामैन फौरन डांटने लगा की बार बार बताने पर भी तस्वीर सही से नहीं खिंचवा रहे हो । राम अधीर थोड़ा संकुचाते हुए बोला की आज अगर समय से चॉकलेट ले आते तो मेम साहब का शुगर लेवल न गिरता । कैमरामैन बड़ी ही सहजता से बोला की तुम अपनी मेम साहब के शुगर के नीचे गिरने से परेशान हो मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूं जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी और उनके देश की मुद्रा अपने इतिहास के सबसे निचले स्तर पर है तब भी वे तस्वीर खिंचवाते वक्त अपने चेहरे पे आत्मग्लानि और तनाव का एक शिकन नहीं आने देते । राम अधीर ने भी लंबी सांस भरी और अबकी चेहरे पे तनाव का एक शिकन नहीं आने दिया ।।

आपदा को अवसर में बदलना

जम्बूद्वीप में इन दिनों मानसून का मौसम है मगर इसके किसी प्रांत में सूखा तो किसी प्रांत में भारी बारिश हो रही है। महाराजा से लोगों ने शिकायत की " महाराज भारी बारिश के चलते ताल तलैया सब भर गए है , मछलियां बह गई है और नालियां पानी से पट गई है और पानी सड़क के ऊपर बह रहा है , फसल डूब गई है " महाराज कुछ कीजिए । जम्बूद्वीप के महाराजा को यह बात अंदर  ही अंदर कचोटी और इस बोझ को हल्का करने के लिए उन्होंने वहां के लोगों से एक तरफा संवाद स्थापित किया और अपने मन की बात शुरू की । उन्होंने अपना बचपन याद करते हुए कहा कि हमारा घर तो तराई क्षेत्र में था और हर वर्ष ही बाढ़ आ जाती तो मैं घबरा जाता तब मेरी मां कहती की हर पल का आनंद लेना चाहिए और आपदा को अवसर में बदलना चाहिए । उनके भाषण को सुनकर जम्बूद्वीप के लोगों के नीरस जीवन में रस ही रस भर गया । जम्बूद्वीप के लोग हर्षोल्लाश से भर गए । इस आपदा को अवसर में कैसे बदले इसका मंथन नगरपालिकाओं में भी चालू हो गया और साफ़ सफ़ाई बढ़ गई जिससे पानी और तेजी से निकलने लगा । बाढ़ के पानी को निकलता देख एक मंत्री झन्नाते हुए राजा के पास पहुंचा और बोला महाराज दे

एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों

मृत्युलोक में इन दिनों मानसून का मौसम है मगर बादलों में यूं लग रहा मानों उनमें पानी का अभाव है । बारिशों के अभाव से मृत्युलोक के प्राणियों में छटपटाहट है और बादलों पर द्वेष की भावना से मुख से मनोहर शब्द बढ़ते जा रहे । जब धरातल का ताप बढ़ने लगा और प्राणियों की ऊर्जा रोजगार की ओर न लगने से माथे पर चढ़ने लगी तब मृत्युलोक के धरातल पर गर्मी और बढ़ गईं । इस ताप का असर राजा को न हो इसलिए मृत्युलोक के सचिवालयों में बैठे सचिव और राजा के मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया की राजमहल के एसी का तापमान 20 से घटा कर 18 किया जाए और कुछ नई एसी लगवाई जाए । राजमहल का तापमान गिरने से राजा की तबीयत बिगड़ने लगी और जब राजा का शरीर ठंड से अकड़ने लगा तो राजवैध ने सलाह दी की कुछ दिन राजा के शरीर को धूप की जरूरत है तो राजा ने निर्णय लिया की वे राज्य के दौरे पे जाएंगे क्योंकि कई दिनों से उनके कृत्रिम गुप्तचर (ड्रोन) के अस्वस्थ होने से उन्हें राज्य के लोगों का और सरकारी काम का भी हालचाल नहीं मिला है । राजा के राज्यभ्रमण का घोषणापत्र मृत्युलोक के हर चौराहों पे चस्पा दिया गया । जब मृत्युलोक के प्राणियों के दूतों ने ढोल मजीरो

देखा हसीन ख़्वाब मगर पल भर देखा ।।

तेरी निगाहों में देखा तो किसी का सबर देखा , तुझको देखा तो मैंने जी भर देखा , बाखबर थी तुम मेरे आने से मगर , जब भी देखा तुझको , मुझसे बेखबर देखा ।। हाथों में किसी के नाम की मेंहदी रची है , तिरे हाथों में किसी के ख्वाबों का शहर देखा ।। तलाश थी तिरी लकीरों में खुद की मगर , किसी ने देखा तिरी लकीरों में मुस्तकर देखा ।। तुम दस्तक दे रही तमाम रातों के बाद , देखा हसीन ख़्वाब मगर पल भर देखा ।। बड़ी उम्मीदी से डूबकर इन आंखों में तिरे , देखा प्यार लेकिन मुख्तसर देखा ।। बड़ी शिद्दत से आखिरी बार देखते हो`गुमनाम` , देखा तेरी शादी में तुझको ता-सहर देखा ।।

जानते है बिछड़ने की अब तैयारी हो रही

जाने किसके आंखों की खुमारी हो रही , इश्क़ में तुम्हारे हिस्सेदारी हो रही , रोज़ झगड़ने की तुम आदत बनाई हो , जानते है बिछड़ने की अब तैयारी हो रही । आज कल मुलाकातों का दौर थम गया , आज कल दिल पर सितमगारी हो रही । किसी और खातिर तुमने पलकें बिछाई है , और हमसे इश्क की अदाकारी हो रही । आंखे अब आईने से अश्क है खोजती , आज कल हंसकर सिसकारी हो रही । कह रही थी दिल तुम्हारे बिन नहीं लगता , टूट गया तो रुख पे पर्दादारी हो रही । जिनको न देखने का वायदा था किया , आज कल उनसे निगह-दारी हो रही । झूठ बोलने वालों का कारवां चल रहा , सच बोल दो तो गिरफ्तारी हो रही । जब थे तो बहुत बुरे थे 'गुमनाम' आज नहीं तो उनकी तरफ़दारी हो रही ।

आंखों में अश्क अब ठहर जाते है

इश्क़ है और इश्क़ बहुत जुनूनी है , ये हिज्र की रात जैसे चौगुनी है , वक्त पर तुम भी अब नहीं आती , चाल तुम्हारी बहुत मानसूनी है ।। कंगन से रुसवाई अच्छी नहीं , तुम्हारी हाथ की कलाई बहुत सूनी है ।। आंखों में अश्क अब ठहर जाते है , कोई चोट वाकई बहुत अंदरूनी है ।। बड़ी खामोशी से बाते हो रही थी ‘गुमनाम’ , छेड़ कर कह रहे बहुत बातूनी है ।।

तबसे चेहरा तेरा ढलता जा रहा है

पैर का तल खिसकता जा रहा है , अब समुंदर गहरा होता जा रहा है , वक्त की जालसाजी में है उलझे , वक्त है और वक्त निगलता जा रहा है , इश्क़ है तो ही लब का जोड़ बिठाओ, मुंह मेरा ज़हर उगलता जा रहा है । इन इबादत की नजरों ने रुख हटाया , तबसे चेहरा तेरा ढलता जा रहा है । ये निगाहें रुखसत होना चाहती है , `गुमनाम’ बेहतर कोई ढूंढा जा रहा है ।

वो झूठ था जो पर्दे पर दिखाया जा रहा

उन्हें सिर आंखों पे बिठाया जा रहा , हैं खुदा के बंदे ऐसा बताया जा रहा , तुम अपनी आंखों से सच देख तो आए हो मगर , वो झूठ था जो पर्दे पर दिखाया जा रहा ।। उन्होंने तो मुहब्बत का दावा किया है ,  फिर भी हमको इश्क़ में आजमाया जा रहा ।। हूं आईना और अंजाम वो जानते है , इसीलिए मुझे फर्श पर गिराया जा रहा ।। कोई नया काम फ़िर निकल आया है उनका , इसीलिए ‘गुमनाम’ रिश्ता निभाया जा रहा ।।

मेरी खूबसूरती फ़िर कितनी ख़ूबसूरत होगी

जाने किसके आंखों की शरारत होगी , होगी किसी के बाहों में तो सलामत होगी , ये निगाहें जो तुम औरों से मिला बैठी हो , ये बात जीने के लिए कितनी गैरत होगी ।। अख़बारों में खबरों की खाक छानती हो , मौत की खबर मेरी , बशीरत होगी ।। मेरी बदसूरती से तुम इश्क़ जो कर बैठी हो , मेरी खूबसूरती फ़िर कितनी ख़ूबसूरत होगी ।। वस्ल की रात और ये ख़ामोशी , बेवफ़ाई में न जाने कब ज़मानत होगी ।। बड़ी ख़ामोशी से बाहर बैठे हो ‘गुमनाम’, होगी तो आज की रात बहुत कयामत होगी ।।

सत्तर सालों से केवल वो सत्ता सत्ता खेल रहे ।।

लोगों खातिर लोकतंत्र सब अंधा हो गया , इस पूंजीवाद में हवा का भी धंधा हो गया ।  अपने ही लोग मर रहे मगर चुनाव जिंदा है , नेता जब हुए जनावर अब कोरट भी शर्मिंदा है ।। दुर्दशा का हाल देख लो मध्य क्षेत्र की झांकी है , धीरे धीरे मेरी जानां सारा देश बाकी है ।। बेड स्ट्रेचर नेता खा गए लोग भी सांसे खो रहे , उठा लाओ वो सारे बिस्तर जिसपर नेता सो रहे ।। माना चुनाव सब जीत गए पर मानवता तो हारी है , बिछ गई लोगों की लाशें मगर ये उत्सव जारी है ।। लोकतंत्र के नाक के नीचे राजशाही का दंश झेल रहे , सत्तर सालों से केवल वो सत्ता सत्ता खेल रहे ।। हाहाकार मचा हुआ है शहरों और अखबारों में , मौज काट रहे सारे नेता सत्ता के गलियारों में ।। खाने को क्या पड़े है लाले जो लाशों से कमाएंगे , श्मशान नहीं है खाली फिर संसद में लोग दफनाएंगे ।। समाजसेवियों पर केस हुआ अब सेवा भी शर्मसार है ,  ऐसे राज्य के सिस्टम पर लानत और धिक्कार है ।।

पलकों से उतार न देना किसी मोड़ पर

 पतझड़ है ये भी गुज़र जाएगा , फूलों पर लौट कर भंवर आएगा , पेड़ तो सदियों से पतझड़ देख रहे , डालियों के सजने का अब पहर आएगा । पलकों से इसी बात की कशमकश हो रही , हल्की रही तो इनपर से कोई गिर जाएगा । पलकें बिछाने की ख्वाहिश भी है , कोई बैठेगा इनमें तो ठहर जाएगा । जिस तरह आंखें भर कर देखती हो तुम , कोई उतरेगा इनमें तो डूबकर ही मर जाएगा । होंठों पर लालियां भी आर्टिफिशियल लग गई , जाने कितनो का चहरा इनसे संवर जाएगा । एक तीर अपनी आंखों से छोड़ भी देना , जिसको लगेगी वहीं पर बिखर जाएगा । पलकों से उतार न देना किसी मोड़ पर , कोई बैठेगा खुद ‘गुमनाम’ फ़िर उतर जाएगा ।।

बजट 2022-23

शुरुवात में कोरोना काल में हुई प्रभावित पढ़ाई की चिंता कर 200 चैनलों की शुरुवात की है । शिक्षा मंत्रालय अब तक क्या कर रहा था । उसे ये नहीं पता था कि पढ़ाई प्रभावित हो थी है या सारा काम वित्त मंत्रालय का ही है । सरकार उस वक्त भी महत्वपूर्ण कदम उठा सकती थी जबकि दो साल बीत जाने पे कदम उठाए जा रहे क्योंकि अभी तक ये सरकार यह मानने को ही तैयार नहीं थी की किसी की नौकरी गई है और उनके बच्चे असमर्थ है विद्यालय जाने में । शिक्षकों के घर में ही उनके लिए डिजिटल बोर्ड या अन्य व्यवस्था की जा सकती थी जिससे वे लाइव पढ़ा पाए । दूसरी बात जल संरक्षण की अभी नमामि गंगे कार्यक्रम का ही कुछ नहीं बताया गया की वो कितना सफल हुआ कितना असफल । हज़ारों करोड़ों सा आंकड़ा हमेशा बताया जाता है उसका उपयोग कहां हुआ कुछ पता नहीं ना ही उसका ब्यौरा दिया गया । जब विजन ही 5 साल का था तो ब्यौरा एक साल में कोई मांगेगा भी नहीं । ये मैनेजमेंट वालों ने चालाकियां कर गर्त कर दिया । कह रहे है पांच नदियों को जोड़ेंगे ये नहीं पता की जिस गांव के बगल से नदी जा रही वहां के लोग नदी से सिंचाई नहीं कर रहे उसकी व्यवस्था कीजिए लोग भूजल की जगह अ

सूना सूना सारा बाज़ार लगता है ।।

ये दिल कितना बेकरार लगता है , किसी की नजरों का शिकार लगता है , हिज़्र की रात और ये ख़ामोशी , कितना अजीब ये इंतज़ार लगता है ।। आंखें उसकी जिस तरह से तकती उसको , दोनों का प्यार बेशुमार लगता है ।। कमीज़ की जेबें जब खाली हो पड़ी , सूना सूना सारा बाज़ार लगता है ।। किसी तालाब में डूबने का जी कर रहा , बहुत भारी अब जिंदगी का भार लगता है ।। लहरों में लिपट जब मन हार जाए , किनारा भी तब बीच मजधार लगता है ।।

तब 'गुमनाम' देखो किधर जाएंगे ??

आसमान बिजलियों से सज जाएंगे , बादल और तेज़ गरज जाएंगे , बत्तियां जलाने की अजमाइश में , लोग अपनी किस्मत से उलझ जाएंगे ।। आसमानों ने भी अंधेरा कर लिया , धीरे धीरे चश्म खुद बुझ जाएंगे ।। एक रात इश्क में बात न करो , जाने लोग क्या क्या समझ जाएंगे ।। टूटकर तो फिर बिखर ही जाना है , एक रहे रिश्ते  सुलझ जाएंगे ।। इश्क़ का दौर और ये ठंडी हवा , हिज़्र आएगी तो बरस जाएंगे ।। जब ताल्लुकात की आखिरी डोर टूट जाएगी , तब 'गुमनाम' देखो किधर जाएंगे ??