एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों

मृत्युलोक में इन दिनों मानसून का मौसम है मगर बादलों में यूं लग रहा मानों उनमें पानी का अभाव है । बारिशों के अभाव से मृत्युलोक के प्राणियों में छटपटाहट है और बादलों पर द्वेष की भावना से मुख से मनोहर शब्द बढ़ते जा रहे । जब धरातल का ताप बढ़ने लगा और प्राणियों की ऊर्जा रोजगार की ओर न लगने से माथे पर चढ़ने लगी तब मृत्युलोक के धरातल पर गर्मी और बढ़ गईं । इस ताप का असर राजा को न हो इसलिए मृत्युलोक के सचिवालयों में बैठे सचिव और राजा के मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया की राजमहल के एसी का तापमान 20 से घटा कर 18 किया जाए और कुछ नई एसी लगवाई जाए । राजमहल का तापमान गिरने से राजा की तबीयत बिगड़ने लगी और जब राजा का शरीर ठंड से अकड़ने लगा तो राजवैध ने सलाह दी की कुछ दिन राजा के शरीर को धूप की जरूरत है तो राजा ने निर्णय लिया की वे राज्य के दौरे पे जाएंगे क्योंकि कई दिनों से उनके कृत्रिम गुप्तचर (ड्रोन) के अस्वस्थ होने से उन्हें राज्य के लोगों का और सरकारी काम का भी हालचाल नहीं मिला है । राजा के राज्यभ्रमण का घोषणापत्र मृत्युलोक के हर चौराहों पे चस्पा दिया गया । जब मृत्युलोक के प्राणियों के दूतों ने ढोल मजीरों से राजा के इस कदम को साहसिक और राज्य के लिए कल्याणकारी कदम बताया तब मृत्युलोक के प्राणीजगत में राजा के कार्य से असंतुष्ट लोगों ने निर्णय लिया की वे खुद राजा को लेने जाएंगे और उनके कार्यों को दिखाएंगे । अंततः वे लोग मृत्युलोक की राजधानी पहुंच गए । राजमहल के आस पास हो रहे कोलाहल से राजा ने खिड़कीी सेे बाहर देखा तो गुस्साए लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ था मानों मृत्युलोक के सभी प्राणी राज कार्य से असंतुष्ट हों । राजा ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलवाई और मंत्रियों से इसके कारण जाने तो बात पता लगी की मृत्युलोक में बारिश के अभाव से फसलों के उत्पादन में गिरावट देखी गई है और लोग भुखमरी की ओर बढ़ रहे है । राज्य के अन्न भंडार खाली न हो इसलिए खाद्यानों के निर्यात पर तुरंत रोक लगा दी गई और एक समिति का गठन हुआ जो ऊर्ध्वलोक में जाकर यह जांचेगी की बारिश क्यों नही हो रही । समिति ऊर्ध्वलोक पहुंच कर बादलों के मंत्रालय में जांच करते पहुंची तो यह पता चला की बादलों के बीच संप्रदायवाद की भावना उत्पन्न होने से बादलों में आक्रोश बढ़ रहा था जिससे वे जहां लड़ते वहां पर मृत्युलोक में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती और कई प्राणियों की मृत्यु हो जाती । असमय मृत्यु से ऊर्ध्व लोक में जन्म मृत्यु रजिस्टर बिगड़ने लगा और इसको संभालने का जिम्मा वहां के पुलिसिया विभाग को सौंपा गया । जब बादलों के टकराव को संभालने के लिए बैठक हुई तो यह निर्णय लिया गया जहां पर संप्रदायवाद बढ़ रहा वहां बादलों के दो गुटों के बीच दीवार खड़ी कर दी जाए । रात दिन मशक्कत करी गई और बादलों के बीच दीवार खड़ी कर दी गई जिससे वे टकरा नहीं पाते और इस तरह मृत्युलोक में बारिश का अभाव होने लगा । समिति मृत्युलोक वापस आई और यह रिपोर्ट राजा के समक्ष प्रस्तुत की । राजन ने तुरंत मंत्रिमंडल की बैठक बुलवाई और सुझाव मांगा तो एक मंत्री ने कहा की मृत्युलोक की प्रेमिकाओं के यार को हंसवा कर बादलों से बारिश करवाई जा सकती है तो एक मंत्री बोला की बेरोजगारी और भुखमरी में कौन यार प्रसन्न होगा तो यह सुझाव यहीं खत्म हो गया तब तक एक मंत्री जो नृत्यकला में प्रवीण था और इसी दक्षता के कारण वो पर्यावरण मंत्री था उसने सलाह दी की बादलों में पानी भरा है और किसी प्रकार बादलों में छेद हो जाए तो वह पानी मृत्यु लोक में बरस सकता है। यह बात सभी मंत्रियों को भा गई मगर सवाल यह था कि बादलों में छेद हो कैसे ? कौन करेगा ? राजा के दिमाग़ में एक तरकीब सूझी और प्रजा के समक्ष भाषण की तैयारी का आदेश जारी किया । राजकोष के धन को भाषण हेतु मंच बनाने के लिए निकाला गया । फूलों और नृत्यांगनाओं से मंच सजा , ढोल मजीरे बजे और राजा का जोरदार भाषण हुआ भाषण के अंत में राजा ने कहा की मृत्युलोक में बारिश के लिए हर प्राणी खुद से परिश्रम करे और बादलों में छेद करे जिसके लिए सरकार उसको पत्थर दिलवाएगी । यह निर्णय सुन कर एक मंत्री जिसे अपने मंत्रीपद का मोह नहीं था वो उठा और बोला महाराज पत्थरों से बादल में छेद कैसे होगा तब राजा ने एक राजकवि की पंक्ति गुनगुनाई - "कौन कहता है आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों" इतना सुनते ही मृत्ययुलोक के लोग बेरोजगारी और भुखमरी भूलकर पत्थरों को बादलों की तरफ उछालने लग गए और मृत्युलोक में ख़बर छपी " राजा का एक और मास्टर स्ट्रोक " ।

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