आंखों में अश्क अब ठहर जाते है
इश्क़ है और इश्क़ बहुत जुनूनी है ,
ये हिज्र की रात जैसे चौगुनी है ,
वक्त पर तुम भी अब नहीं आती ,
चाल तुम्हारी बहुत मानसूनी है ।।
कंगन से रुसवाई अच्छी नहीं ,
तुम्हारी हाथ की कलाई बहुत सूनी है ।।
आंखों में अश्क अब ठहर जाते है ,
कोई चोट वाकई बहुत अंदरूनी है ।।
बड़ी खामोशी से बाते हो रही थी ‘गुमनाम’ ,
छेड़ कर कह रहे बहुत बातूनी है ।।
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