ध्यानी राजा


राज कार्य छोड़ एकांत में बैठ कर ध्यान कर रहे राजा दर्पण को जब ज्ञान की प्राप्ति हुई और यह जाना दुनिया में सत्कर्म की जगह बुरे कर्मों का बोलबाला क्यों हो रहा है तो वे सीधे वापस अपनी राजधानी लौट आए । राजा के राज्याभिषेक की घोषणा हुई और राजा को दुबारा गद्दी पे देखने के लिए जनता लालायित हो उठी और जिन्हें पिछली बार राजा में बुराई दिख रही थी वे भी इस बार राजा से प्रभावित होकर जन समर्थन का प्रदर्शन करने राजा के महल के बाहर पहुंच गए । पुनः राज्याभिषेक के बाद जब राजा का भाषण हुआ तो उन्होंने कहा कि लोगों के दुखों का कारण है दुखी होने के भाव और दुखी होने का शब्द , तो जिस शब्द से व्यक्ति दुखी होने के भाव को प्रकट कर पाए वो शब्द ही अगर शब्दकोश से निस्तारित कर दिए जाए तो लोगों के दुखों का अंत किया जा सकता है । राजा के भाषण के बाद कई विद्वान आए और शब्द की तलाश की गई और शब्दों को शब्दकोश से हटाया जाने लगा । चोरी , छीना झपटी , दुःख , पीड़ा , द्वेष , भ्रष्टाचार , भ्रष्टाचारी , छिनैती , डकैती , डकैत , चोट , चपेट , दर्द , पीड़ा , अन्य कई शब्दों को शब्दकोश से हटा दिया गया । लोग राजा के वापस आने पर बेहद प्रसन्न थे और राज भक्ति में लीन थे । कई दिनों बाद किसी के घर में चोरी हुई और रपट लिखाने चौकीदार के पास जाने की तैयारी के लिए घर में चर्चा हुई तो किसी को समझ ही न आए की रपट किस चीज की करें क्योंकि अन्याय तो हुआ है और इस अन्याय से काफी हानि हुई मगर उस अन्याय को प्रकट करने का शब्द ही नहीं । अब उन्हें ज्ञात होना प्रारंभ हुआ की राजा के ज्ञान प्राप्ति में कुछ बातें अधूरी रह गई है और उन्हें मनुष्य की आंतरिक पीड़ा को दूर करने के लिए ध्यान करना चाहिए ?  धीरे धीरे यह बात पूरे राज्य में फैलने लगी । चोरों की तो मौज ही हो गई क्योंकि लोग चोरी की रपट लिखवाने की बजाए अपनी गाढ़ी कमाई के लुट जाने से आंतरिक घाव को भरने और दुःख को खत्म करने की कोशिश में लगे हैं । जब कई वर्षों बाद राजा को इस बात का ज्ञान हुआ और राजा को कोई विकल्प नहीं सूझा तो राजा फिर जन कल्याण के लिए गुफा में ध्यान करने बैठ गए ।

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