सत्तर सालों से केवल वो सत्ता सत्ता खेल रहे ।।

लोगों खातिर लोकतंत्र सब अंधा हो गया ,
इस पूंजीवाद में हवा का भी धंधा हो गया ।

 अपने ही लोग मर रहे मगर चुनाव जिंदा है ,
नेता जब हुए जनावर अब कोरट भी शर्मिंदा है ।।

दुर्दशा का हाल देख लो मध्य क्षेत्र की झांकी है ,
धीरे धीरे मेरी जानां सारा देश बाकी है ।।

बेड स्ट्रेचर नेता खा गए लोग भी सांसे खो रहे ,
उठा लाओ वो सारे बिस्तर जिसपर नेता सो रहे ।।

माना चुनाव सब जीत गए पर मानवता तो हारी है ,
बिछ गई लोगों की लाशें मगर ये उत्सव जारी है ।।

लोकतंत्र के नाक के नीचे राजशाही का दंश झेल रहे ,
सत्तर सालों से केवल वो सत्ता सत्ता खेल रहे ।।

हाहाकार मचा हुआ है शहरों और अखबारों में ,
मौज काट रहे सारे नेता सत्ता के गलियारों में ।।

खाने को क्या पड़े है लाले जो लाशों से कमाएंगे ,
श्मशान नहीं है खाली फिर संसद में लोग दफनाएंगे ।।

समाजसेवियों पर केस हुआ अब सेवा भी शर्मसार है , 
ऐसे राज्य के सिस्टम पर लानत और धिक्कार है ।।

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