उनके रोने से अच्छी है शिकस्तगी अपनी ।

गैर हो गई ज़िंदगी अपनी ,
जब समुंदर से बड़ी तिश्नगी अपनी ,

रुसवा है , तंग है , ये राहें भी ,
छोड़ आए अब दिल्लगी अपनी ।

 दर्द जिंदगी के अधूरे होने का नहीं,
ये जो नामुकम्मल रही आवारगी अपनी ।

वो हंसे बस मामलात इतना भर था ,
उनके रोने से अच्छी है शिकस्तगी अपनी ।

मुफलिसी में अपनों की हिदायत से , 
लाख अच्छी है बेगानगी अपनी ।

उनकी एक बेफाई से ही रो रहे गुमनाम ,
कैसी नामर्दानी है मर्दानगी अपनी ।।

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