मंज़िल तक साथ अब निभाना नहीं है क्या
अपने चाहने वालों को दिखाना नहीं है क्या ?
अब किसी और से दिल लगाना नहीं है क्या ?
इन आंखों में क्यों इतना मशगूल हो गई ,
आज फ़िर पलकों को झुकाना नहीं है क्या ?
तेरे चेहरे से पहली दफ़ा घूंघट उठाया है ,
होठों पर तबस्सुम रख शर्माना नहीं है क्या ?
गुज़ार तो लें ज़िन्दगी बस तुम्हें देखकर ,
तुम्हारे अलावा और ज़माना नहीं है क्या ?
आधे राह से ही लौटने का मन बना लिया ,
साथ मंज़िल तक अब निभाना नहीं है क्या ?
इस मसाफ़त का कोई इलाज़ ढूंढ़ लो ,
पास आने का कोई बहाना नहीं है क्या ?
कितने दिन हिज़्र की रातें गुजारेंगे ,
तुमको मिलने अब यहां आना नहीं है क्या ?
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