तिरी याद मिटाए जा रहा हूं मैं
ख़्वाबों को तस्लीम कर हटाए जा रहा हूं मैं ,
तुझपर कितना वक़्त लुटाए जा रहा हूं मैं ,
तुम कह रही की खाली बैठा रहता हूं ,
तसव्वुर से तिरी याद मिटाए जा रहा हूं मैं ।
मेरे अश्क़ बुझा देंगे जलन मेरी ; सोचा था ,
कम्बख़त आग और भड़काए जा रहा हूं मैं ।
क्यों ना करूं नफ़रत उसकी निगाहों से ,
मुद्दतों से जिनकी यादों का सताए जा रहा हूं मैं ।
उस तिल के उभार पर किसी और का बोसा सह जाना ,
देख तेरी बेवफ़ाई सरेआम बताए जा रहा हूं मैं ।
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