ज़मीं भी उसको आहटों से जानने लगी
ज़मीं भी उसको आहटों से जानने लगी ,
ये कब्र मेरी धड़कने पहचानने लगी ,
बेवफ़ाई की तोहमतें लगा रही थी ना ,
फ़िर क्यों आजकल ख़ाक छानने लगी ।
इतने साल बात करने की इनायत ना हुई ,
ये कैसा इश्क़ तुम हमसे निभाने लगी ।
इतने दिनों बाद नींद दस्तक दे रही है ,
फ़िर तिरी याद मुझको आने लगी ।
तुम्हारी वफ़ा पर और भरोसा क्या करे ,
मुझसे ज्यादा गैरों की बात जब मानने लगी ।
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