मन की भड़ास
मानो सब कुछ थम सा गया हो । दिल की हर एक धड़कन में , धमनियों में रक्त प्रवाह का पता चल रहा था । दिमाग भी कितना बेईमान होता है मन को स्थिर करने की बजाय मन जिधर ले जा रहा उसी के पीछे हो लिया । चिंताओं के बादल चारों तरफ इस कदर चढ़ गए जैसे प्रलय के आने का अंदेशा हो और हुआ भी आखिर वही । माथे से पसीने की धारा इस तरह बह रही थी जैसे रुके हुए नदी के जल प्रवाह को निकलने की जगह मिल गई हो । पंखा अपने प्रचंड रूप में चल कर भी अंदर की प्रचंड गर्मी को शांत करने में कामयाबी हासिल नहीं कर पा रहा था । मोहब्ब्त की सारी आकांक्षाएं धरी की धरी प्रतीत जान पड़ती । एक आखरी स्पर्श को तरसते हाथों की उंगलियों से पूछो की अपनों को छोड़ कर जाने पर आखिरी स्पर्श ज़िन्दगी की बैटरी में कितनी ऊर्जा भरने का काम करता है । हां कुछ शर्मिंदगी ज़रूर होती है समाज को दिखाने में क्योंकि आप के निजी सम्बन्ध कभी समाज स्वीकार नहीं करता । अब वो चाहे समाज की अपरिपक्वता को दर्शाता हो या फिर हमारे भीतर बैठे संकोच और एक सामान्य सा डर की लोग क्या कहेंगे । लेकिन आज की पीढ़ी इस डर को पीछे छोड़ ज़िन्दगी के हर लम्हे अपनी स्वछंदता से जीने लगी है । जहां हम पर स्वतंत्रता से जीने का अधिकार जो संविधान प्रदान करता है वो पूर्णतः लागू नहीं था स्वछंदता तो दूर की बात है ।
अपनी महबूबा के चाल चलन से इतना वाकिफ हो चुके थे कि उसको उससे भी ज्यादा जानने का दावा ठोकने की काबिलियत और जुनून रखते थे । लेकिन ये संभव ही कहां होता है कि आप दूसरे को उससे ज्यादा जान पाए । यहां पति पत्नी सालों रहने के बाद भी पत्नी के चाहत का काम पति नहीं कर पाता और पत्नी जो कर दे वहीं पति उसको अपनी चाहत बना लेता है । यही सारी चीजे समाज स्वीकार नहीं करता लेकिन यही हर घर की दास्तां है । वहीं ज़िन्दगी में कुछ ही पूरे सपने थे उनको आगे के मार्गदर्शन के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे और अधूरे सपने को पूरा करने की ओर अग्रसर थे । अधूरे सपनों में पढ़ाई लिखाई या कलेक्टोरेट का पद जैसी चीजे नहीं थी हां ख्वाहिश तो होती है सबको की सफल व्यक्ति बने लेकिन नजरिया भी तो अलग अलग होता है । अधूरे सपनों की दुनिया में पहले कदम पर मोहब्बत लिखा हुआ था और आखिरी में भी मोहब्बत । यौवन पूरा बीत गया लेकिन कम्बख़त इश्क़ का अनुभव नहीं हुआ था । तो सोचे की लाओ करके देखते है लेकिन ये चीज ऐसी है की ज़बरदस्ती करो तो लोग हवस का नाम दे देते है । तब तक मैंने प्यार करने का नज़रिया बदलने का मन बना चुका था फिर किसी लव गुरु ने सलाह दी कि तुम काहे नज़रिया बदलोगे नज़रिया तो लोगों को बदलना चाहिए । अब जिस लड़की से खुद के लिए काबिल लड़की ढूंढने का काम मना किया था कम्बख़त दिल भी उसी लड़की के पीछे पागल हो चला था । दूसरों को मिलाने में जितना आनंद ले रही थी जब खुद के मिलने की बारी आईं तो हाए राम इतने नखरे मानों कोई अप्सरा उतर आईं हो धरती पर । ये लड़कियां भी बहुत चालू होती है । दिल में प्यार लिए घूमते भी रहेंगी और ज़ाहिर करने में हिचकेंगी भी । महज़ एक हाथ की दूरी पर बैठी होगी जब कभी देखो उसके चेहरे पर ये सोच कर की आंखे तो मिलेंगी ही और आंखों ही आंखों में प्यार का इजहार कर बैठेंगे मगर उसकी चालाकी उससे आगे । पता नहीं क्यों जब लड़की को ना देखो तब वो चुपके चुपके आपको देखने लगती है। हम ठहरे नासमझ लड़के लगा की देखने की बारी हमारी खत्म हुई तो अब उनकी बारी है नहीं तो समानता के अधिकार का हनन होगा । अब उनके सामने किसी लड़की की बात उभार भी दो तो ऐसा व्यंग आपके सामने आएगा की मानो सबसे पीड़ित दयनीय स्थिति इन्हीं की है । देखने की बारी के बाद सोचे की कुछ बोले तब तक तपाक से बोल पड़ी " हां हम उतने खूबसूरत नहीं है ना " । अब इन लड़कियों को कौन समझाए कि हम लड़कों को कब खूबसूरत चेहरे से प्यार हुआ है । अभी तक यही बात सुनी थी की जब प्यार होगा तो पता नहीं चलेगा लेकिन आपको हो जाएगा । धीरे धीरे आपको आदत लग जाएगी । उसके नखरे झेलने की , उसके अदा नज़रें झुका कर मुस्कुराने की , उसके भीगे बालों पर जान छिड़कने की , उसकी मुस्कुराहट को देख कर उसके खूबसूरत होने का एहसास उसको दिलाने की । अपनी ज़िन्दगी में आप उसके साथ जीने लगते है । कितने कोसों दूर हो कोई फर्क नहीं पड़ता । तकिए को बगल में रख यूं मान की वो साथ में है और तकिए के एक सिरे को चूमना मानो उसके गालों को चूम रहे हो एक अलग ही नशा है इस इश्क़ में । वैसे इश्क़ और पागलपन में ज्यादा अंतर होता नहीं है । पहली दफा लगा की इश्क़ हो गया । ऐसा लगा की मानो ज़िन्दगी में बाद एक ही सपना है बस उसको हासिल करने का । ये अनकहा अनसुना सा इश्क़ था जिसको कभी ख़्वाब में सोचे नहीं थे जिसको अपने खयालों में कभी जगह नहीं दी उसी लड़की से इश्क़ का इज़हार करना बहुत कठिन काम जान पड़ता ।
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