बस्ती में आग फ़िर किसने लगाई है

इश्क़ था हम से और हम से बेवफ़ाई है ,
तुम हो और ये प्यार बे-जाई है ,

 *  बे-ज़ाई - हद से ज्यादा

ज़ी रहे हैं हम तेरी यादों की तन्हाई में ,
इस तरह की जिंदगी में जीना हरजाई है ।

आओ उड़ के देख लो खुले आसमान में ,
आख़िरी उड़ान केवल रूह उड़ पाई है ।

तीन साल इश्क़ छः वस्ल में होने है ,
हमसे पूछो कैसे इतनी शामें बिताई है ।

 *  वस्ल - मिलन

सबके पास माचिस "गुमनाम" दीप जलाने को ,
बस्ती में आग फ़िर किसने लगाई है ।

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