गुमनाम जगाओ चेतना जहिमा ब्रह्म समाए ।
पहचान रंग की आंख से ईहां तो रंग भगवान ,
मदिरा मांस चलि रहा क्या हिंदू क्या मुसलमान ।।
लोकतंत्र वह लोक जहां जनता की मलिकाए ।
ईहां रंग गद्दी दिलवाए रहा अऊ रंग सरकार गिराए ।।
मनुष्य मन के रंग का घर सोचिन लिए पोताए ।
जग घूमन आए भट्टी में अऊ करिखा लेई लेई जाए ।।
मनवा जईसन चाहि रहा दर्पण रहा दिखाए ,
चसमन खातिर पईस्वा झूठहिं फुंकि जाए ।।
रंगन पर क्यों लड़त हो अंधेर भए जो बिलाए ,
गुमनाम जगाओ चेतना जहिमा ब्रह्म समाए ।।
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