ये सब्र इश्क़ का

ये सब्र इश्क़ का ख़ानुमाँ-ख़राब बन गया , 
तेरा चुप रहना ही जवाब बन गया ,

वो हारता रहा कई सदियों तक मगर ,
इक दिन वो भी ज़फर - याब बन गया ।

तुम्हारा वायदा कुछ दिनों तक वायदा रहा ,
वो भी ना जाने कब एक ख़्वाब बन गया ।

डूब ख्वाहिशों के सफ़ीने सारे गए ,
इन अश्कों में जो आज सैलाब बन गया ।

तुमने तो कभी रूठ कर शिकवा ना किया ,
ये ज़ख्म - ए - दिल कैसे ख़ूनाब बन गया ।

शम्स को अपने होने का था बहुत गुरूर ,
इन बादलों ने घेरा तो माहताब बन गया ।

हुज़ूर ने क्रूरता की फूंक क्या मारी ,
वो चिंगारी से इंकलाब बन गया ।



* ख़ानुमाँ - ख़राब - भग्यहीन/बेघर
* ज़फ़र-याब - विजयी
* ख़ूनाब - खून के आंसू
* शम्स - सूरज
* माहताब - चांद

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