मालिक रातों की ज़द में है
सब आवारा हुए ; खाली रैन - बसेरा क्यों है ?
ईमानदार सब हो गए ; नेता लुटेरा क्यों है ?
फ़िर सारे जहां में अंधेरा क्यों है ?
जब मालिक रातों की जद में है ,
फ़िर नौकर के घर सवेरा क्यों है ?
जिस पेड़ का एक तिनका भी ना बचा ,
उसपर फ़िर परिंदों का बसेरा क्यों है ?
उनके हिस्से में हिज़्र की रातें नहीं है क्या ?
इश्क़ में सारा ज़र्फ़ सिर्फ़ मेरा क्यों है ?
तुमने तो कहा था कि क़त्ल करना छोड़ दिया है ,
फ़िर चेहरे पर इन जुल्फों को बिखेरा क्यों है ?
हर खुशी तुम्हारे साथ है जानाँ ,
फ़िर दूसरी तरफ़ तुमने मुंह फेरा क्यों है ?
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