बताए खुद ही वो शख्स इतना मुब्तला क्यों है ?

दिन आए है गर अच्छे तो फिर इतनी बला क्यों है ,
तेरे दीदार करने का , नहीं कोई मशगला क्यों है ?

जो कहते थे बहुत खुशियां पड़ी है अपने आंगन में ,
बताए खुद ही वो शख्स इतना मुब्तला क्यों है ?

ज़िंदा रहना और मरना यहां दोनों ज़रूरी है ,
कम्बख़त ये नाकाबिल ज़िन्दगी इतनी मरहला क्यों है ?

उजाड़ी कोख हो जिसने मिटाएं हो कई सिंदूर ,
कहो "गुमनाम" तिरी सरकार में वो फूला - फला क्यों है ?

Comments

Popular posts from this blog

उनके रोने से अच्छी है शिकस्तगी अपनी ।

कहिया मिलन होई मोर सजनिया ...

वो खत ।