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Showing posts from October, 2019

कह दिया है इश्क़ है ।।

तुमने उससे दिल लगाकर कह दिया है इश्क़ है , तुमने मेरा दिल जलाकर कह दिया है इश्क़ है , तुम हो वही ना जो कहती कभी थी कि क्या आजमाना इश्क़ में , तुमने मुझको आजमाकर कह दिया है इश्क़ है । ज़ख्मी हथेली से तेरे उस रोज़ थामे हाथ जो , हाथ वो तुमने छुड़ाकर कह दिया है इश्क़ है । आज तलक सामने जिसके पलकें तुम्हारी झुकी नहीं , आज उसी से नज़रे चुराकर कह दिया है इश्क़ है । जो था दिया मैंने तुम्हे एक गाल पर बोसा कभी , आज सब तुमने भुलाकर कह दिया है इश्क़ है । बे अदब और कटुता भूले थे तेरे लिए , तुमने सब याद दिलाकर कह दिया है इश्क़ है । किस ज़ुबां से है वफ़ा कहोगी अब ए मेरी दिल्लगी , उससे जब तुमने मुस्कुराकर कह दिया है इश्क़ है । जिसके खातिर ठोकरें 'अम्बर' दर दर खाते रहे , उसने भी ठुकराकर कह दिया है इश्क़ है ।।

देख वो मेरा जान ए बसर आया है

जो छुपा था शर्माकर बादलों में कहीं अब निकल वो क़मर आया है , चकरोड़ें अब खामोश पड़ने लगी शायद उससे मिलने का पहर आया है , अब छेड़ो तराना दूसरा कोई यार मेरे , उसकी बातों से मेरा गला भर आया है । मेरे आने से वाक़िफ नहीं मिरी दिल-नशीं शायद , इत्तला कर दो उसे की मिलने उसका मुन्तजिर आया है । उसके पासबानों की इज्ज़त करके जिए अब तक , कह दो वो होकर उन सबसे बेखबर आया है । दिल के इक कोने में उसने छिपाकर रखा था जिसे , अब जाकर कहीं उसकी आंखों में वो नज़र आया है । एक आखिरी मुलाकात पर बोसा का इकरार हुआ , खिज़ा साथ होने का ये सफ़र आया है । छोड़ गए थे जिसे बिखरते हुए हम कभी , नज़रे खुली तो देखा वही बिखरा हुआ घर आया है ।           मुरझाए चेहरे खिलखिला कर बोल उठे , देख वो मेरा जान - ए - बसर आया है । जो टूट कर आसमां में गुम हो जाया करते है , देख वो टुकड़ा लौट कर आया है । कुछ खामोश , कुछ गुमशुदा-सा है तो रहने दो उसे , वो हलक से पीकर मोहब्बत का ज़हर आया है । 

बुझा गया कोई हर प्यास अब मेरी प्यास कहां तुझमें

इजाज़ - ए - वक़्त का ही हश्र है कि वो इख्लास कहां तुझमें , बुझा गया कोई हर प्यास अब मेरी प्यास कहां तुझमें । गश - ए - इश्क़ में हम यहां अब तल्ख़ ना होश आया है , वो खुश है अभी तुझसे नया जो जौक़ पाया है । जो बातें ही नहीं हुई वो वजह तर्क - ए - तअ'ल्लुक की , जिसकी मुन्तजिर तू थी वो शायद लौट आया है । खियाबां के सारे फूल ये देख मुरझा गए , भंवर इकलौता मिलने सिर्फ जो तुझसे आया है । तब्सिरा करके तुझे बदनाम क्या करते , तेरी बेवफाई ने ही तुझे बदनाम करवाया है । जो रहने पर थी ज़िंदा वो मेरा एहसास कहां तुझमें , बुझा गया कोई हर प्यास अब मेरी प्यास कहां तुझमें ।। मेरी नर्गिस के चर्चे हर जगह बेशुमार हो गए , जो दीदार कर बैठे वो तलबदार हो गए , लुटाते दौलतें क्या देख तेरे रुख्सार की लाली , झुकी पलकें तेरी हम तेरे कर्जदार हो गए । कभी थी छपी तस्वीर तेरी कोरे कागज़ पर , सुना है आज के वो दौर में अख़बार हो गए । जिन्हे रौनक - ए - गुलशन के कोमल फूल समझे थे , वो बनकर तीर नाफ़िज दिल के पार हो गए । जो दी थी मुस्कुराकर अब बची वो सांस कहां तुझमें , बुझा गया कोई हर प्यास अब मेरी प्यास कहां तु

बस अपनों पर यहां कीचड़ उछल जाएगा ।।

ख़िज्र-ए-इश्क़ है दिल में निकल जाएगा , अभी नादान है वो संभल जाएगा , ताबिश-ए-हुस्न को ढक कर रखो , ये दिल मोम है फिर पिघल जाएगा । किस्सा-ए-इश्क़ में सांस बाकी है , अभी थोड़े ही धूल में मिल जाएगा । तेरा हुस्न जो जाज़िब था कभी , ये उम्र के साथ है ढल जाएगा । ये " फिर कभी " का सिलसिला ना दोहराओ , अब वो वक़्त नहीं जो टल जाएगा । ये दिल मेरा है तुम्हारा थोड़े है , जो किसी और पर मचल जाएगा । हिज्र-ए-इश्क़ अब और सहन होता नहीं , कोरे पर पैर है फिसल जाएगा । इस्त्रार करके सामने क्या इजहार करते , जब इल्म था कि हो कत्ल जाएगा । जा'इ का खौफ है नहीं ' अम्बर ' बस अपनों पर यहां कीचड़ उछल जाएगा ।।

तुम्हारे होंठ पर वो तिल बहुत ही कातिलाना है ।।

अब अपनी मुस्कुराहट से फिर किसको लुभाना है , फिर झुकी पलकों से किसका दिल जलाना है , समय साथ था तब भी और वो आज भी है पर , इत्तिका थी कभी तुम आज मय का ज़माना है । आओ जो शौकीन है पीने का बुला लो जिस जिसको भी पिलाना है , नशा भरपूर दर्द भी है ये दिलजलों का मयखाना है । पग लड़खड़ाए पर ये ज़ुबां ना लड़खड़ा जाए , पियो जितना आखिर लौट कर तो घर ही जाना है । जो तुम कहती रही "फिर कभी" मलाल इसी बात का होता  है  , जो खुद रखते नहीं शर्म फिर उनसे क्या शर्माना है । ज़िन्दगी में हर कज़ा मंज़ूर है लेकिन , ये मेरी ज़िन्दगी भी तेरी बेवफाई का अफ़साना है । थामों कंधो को तो फ़िर कभी ये हाथ ना कांपे , छूटे हाथ कैसे साथ ज़िन्दगी भर निभाना है । तेरी तारीफ़ क्या करूं जब दिल से दिल मिलाना है , तुम्हारे होंठ पर वो तिल बहुत ही कातिलाना है । कभी खुलती थी पलके तो तेरा दीदार होता था , आज फिर से कागज़ों में इन नज़रों को खपाना है ।।

कुछ भी ना लिखूं

यहां तन्हा - सा बैठा मैं ज़रा सोचूं की क्या लिखूं , पुराने ज़ख्मों की यादें या पुराने जख्म ही लिख दूं । देखा नजर में उनकी तो दौड़ चमक सी गई , लिखूं क्या मोहब्बतों की यादें या महबूब- ए - याद लिखूं । नजर गई उनके होंठ तो है थिलथिला रहे , लिखूं क्या उनकी तनहाई या तनहाई अपनी लिखूं । मोहब्बत ने दिया है सब मोहब्बत ने लिया है सब , लिखूं क्या दर्द - ए - इश्क़ पर या दर्द - ए - दिल लिखूं । बीत गया समय यही सोचते यारों , लिखूं क्या गुज़रे वक़्त पर या कुछ भी ना लिखूं ।।

कोई माखन लेकर आएगा ।।

उस गरीब की बस्ती में कोई उजियारा करने आएगा , वो कोई मोदी सोनिया नहीं ना गांधी ही कहलाएगा  । कैसे कर रही है रातें कैसे बीत रहे है दिन , उसकी दर्द कहानी को सुनने कोई आएगा । राह देख रहा है वो उनका जो वायदे करके गए है , उन वायदों को दोहराने फिर कोई नेता आएगा । कितने तो जीते है मिलकर मगर वो अकेला है बैठा , इस अकेलेपन को दूर करने कोई आएगा । दिल है उसका छोटा मगर गहराई है बहुत , उन भावना की गहराइयों में डूबने कोई आएगा । गम है उसको इसी बात का कोई दर्द सुनने आएगा , बेचारे शब्द से संबोधित करके काका ही बुलाएगा । कष्ट बहुत है उसको इस वक़्त करने की है चाह बहुत , उसके घाव भरने को कोई माखन लेकर आएगा । उसको कहते है सब रखलो मुझको अपने यहां , वो इस आस में बैठा है कि कोई नौकर ढूंढने आएगा । उसका आशियां बना ही कब था जो तोड़ने वाले आ पहुंचे , फिर कोई नेता काका कहकर उसका घर बसाएगा । यही है भारत के गांव की गाथा जो कहते मोदी आया है , वो दूसरों से क्या मिलेगा जो अपनों से ना मिल पाया है ।

क्यों ??

सांत्वना देते हुए यूं भाव विभोर हो जाते हो , टूटे हुए अंतरिम हृदय का अंदरूनी शोर हो जाते हो , खिलखिला चहकते हुए मुखातिब चांद से हो जाते हो , आंचल में पालने वालों से बेचलन व बोर हो जाते हो । गुरुमुखी के नाम पर द्रवित हृदय कर जाते हो , परिवार में सब एक छोर तुम दूसरा छोर हो जाते हो । आधुनिकता की धुंध में दूर अपनों से ही हो जाते हो , क्या प्रमाणित कर लिया जो खुद ही इतना मगरूर हो जाते हो । द्वार चौखट आलिंगनों पर खड़े जिनके सहारे हो जाते हो , उन्हीं को छोड़ बेसहारा दुनिया के लिए पैर हो जाते हो । कहां गलती हो गई कम्बख़त नज़रों से नजर मिलाते हो , क्यों छोड़ मां बाप को अपनी मेहबूब ओर हो जाते हो ।

शायद मुझको इश्क़ हो गया है

उसी की बातें रहती है ज़ुबां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है , तस्वीर ख्वाब में नजर आसमां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । नज़रों को पलको से यूं छुपाती है वो , चाहत हर पर नज़रों से दिखाती है वो , हूं फिदा उसकी नज़र - ए- कातिलां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । उसी खातिर अन्दर से धड़कता है दिल , उससे हर बार मिलने को तड़पता है दिल , हूं उसी के इश्क़ - ए - निशां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । डांट मेरे खातिर सुनती है वो , सेहरा प्यार का हर पल बुनती है वो , मुस्कुरा देता हूं उसकी खामियां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । हर परग कुछ सोच कर चलती है वो , अपनों से कुछ जान कर जलती है वो , रहता हूं उसके हुस्न - ए - दुकां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । नज़रों ने नज़रों से कह दिया है इश्क़ , दिल ने भी अब मान लिया है इश्क़ , लाना है बस दिल से ज़ुबां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है । तोड़ बेड़ियां अब नहीं सहना है , है उसी से इश्क़ यह कहना है , है लाना उसको अपने आशियां पर , शायद मुझको इश्क़ हो गया है ।।