बिताने संग मुझको बस मुझे मेरी माँ चाहिए |
क्यूँ हूँ स्वच्छंद मै इतना
दूर आपसे रहकर ,
मुझे आशियाने में तेरी मैली
आँचल ही चाहिए ,
दिन भर बीतता है वक्त मेरा
शोर शराबो में ,
मुझे खनकती तेरी टूटी हुई
पायल ही चाहिए |
बहुत गुज़रा ज़माना याद है
बहुत जिए है तेरे बिन ,
मुझे जैसा भी था हर हाल में
वो बीता कल ही चाहिए |
भले खाने को दे तू तेल ,
नोन और रोटी माँ ,
मुझे तो तेरे संग भूखे
गुज़ारे वो पल ही चाहिए |
कहाँ मिलती है ऐसी लूट ममता
की इस दुनिया में ,
मुझे तो रूद्र तेरा रूप वो
अफज़ल ही चाहिए |
बहुत मारा है मुझको इस
कुदरती जिंदगी ने ,
मुझे मारे तेरे वो पीठ पर
चप्पल ही चाहिए ,
है मांगता ये भक्त बाबा
महाकाल तुझसे ,
ना वो सप्तरंगी दुनिया ना
वो ज़हान चाहिए |
अगर देता है तू देदे खंडहर में
श्री राम मयी कुटिया ,
बिताने संग मुझको बस मुझे
मेरी माँ चाहिए |
( अम्बरेश
कुमार यादव )
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