सूनी है सूनी ही रह जाती है

सूनी है सूनी ही रह जाती है ,
ज़िंदगी भी कितना आज़माती है ,

इस तरह रुखसत हो कर जाती हो ,
आखिरी इक मुलाकात रह जाती है ।।

सीने पर वार नहीं कर पाती जब ,
सारी दुनिया फ़िर गले लगाती है ।।

इश्क़ की बिसात पर जब हो ज़िंदगी ,
मोहरे सारी वहीं धरी रह जाती है ।।

बेड़ी तोड़ने का क्यों पाप कर रहे ,
इक रात है जिसमें बेड़ियां खुल जाती हैं ।।

सपने तो सच हो भी सकते है ,
हक़ीक़त सिर्फ़ यादें बन रह जाती है ।।

मिली कहां जो तुमको हम खो दिए ,
मिल बिछड़ते सदियां बीत जाती है ।।

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