तुम कह रही थी

तुम कह रही थी की गुज़र जाएगा ,
तेरी याद का दौर है 
जब जी रहे तो साथ है और 
शायद धूमिल होने के बाद भी 
किसी पन्ने पर लिखावट बन 
किसी क़िताब में कैद रह जाएगा ।

अपना इश्क़ भी किसी कैदी सा ही रहा ,
आंखे दूर तलक आज़ादी खोजती 
मगर सिमट के एक बंद कमरा 
जिनमें दीवारों की दरख्तों से 
तुम्हें निहार कर खुश देखने की कशिश में
उस वक्त के खुशनुमा पल का 
बेरहमी से कत्ल करना 
वो पल कुछ कातिल सा रहा ।

मौसमी हवा को छोड़ जाना ,
कृत्रिम रूप को अपनाना 
बारिश की बौछारों का मज़ा 
पाइप से 
उन बौछारों का आनंद लेना 
तेरे मखमली कपोल पर
सिरहाने रखी तकिया मोड़ कर
उसको चूमना 
सब भूल तेरी यादों में खो जाना 
तुझे सपनों में पाने के लिए 
चाहता हूं मैं सो जाना ।

 


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