ख़ुद को भूले है मगर तुम याद आती रही


इश्क़ के पैगाम में बे-दाद आती रही ,
दूसरे मुल्क से लोगों की तादाद आती रही ,

कह रहे थे हम तुम्हें आज़ाद करने आ रहे ,
ज़िंदगी खुद बन कर फसाद आती रही ।।

आंखे बंद हो गई राह तेरी तकते तकते ,
आसमां से भी किसी की परी-ज़ाद आती रही ।।

भूलने के वायदे का क्या हिसाब करे ,
ख़ुद को भूले है मगर तुम याद आती रही ।।

काफ़िर कह कर उन्होंने मशहूर इतना कर दिया ,
मर जाने के लिए मुबारकबाद आती रही ।।

खुदा बनने बाद भी “गुमनाम” रोता रहा ,
जाने कितने लोगों की फ़रियाद आती रही ।

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