क्या तरक्की हुई है तेरी निज़ामी में ।।
नौकर है फिर भी कमी नहीं सलामी में ,
हम हारे भी तो बड़ी धूम-धामी में ,
वो बोलने की हिदायत सिखा रहे ,
जिन्हे गर्व है अपनी बद-कलामी में ।।
हाल क्या सुनाए उस जिंदगी का जो
तुमसे मयस्सर है ,
काट रहे है हर पल बस तेरी गुलामी में ।।
अपनी कुर्सी का इंतेजामात
कर तो आए हो मगर ,
लोग मर रहे तुम्हारी बद-इंतजामी में ।।
निवाले छीन साहिल पर जो रिहाइशियां
बना रहे हो तुम ,
बह जाएंगे सब बस एक सुनामी में ।।
उस जहान में मशहूर हम
हो तो गए होंगे ,
सदियां जो हमने काटी थी गुमनामी में ।।
बारिशों में भी घर जल गए है
लोगों के ,
क्या तरक्की हुई है तेरी निज़ामी में ।।
सहेज कर तुम क़फ़स में खुश रखना
चाहते हो ,
खिल उठेंगे ख़ुद ही बे-नियामी में ।।
तुम्हें छोड़ कर भी मंज़िल
हम पा लेंगे ,
अकेले क्या करेंगे ऐसी मकामी में ।।
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