क्यों इतना तुमसे ताल्लुकात रख रहे है हम ।

तन्हाई भरी जिंदगी ज़ी रहे है हम ,
जी रहे है जिंदगी या मर रहे है हम ,

कुछ ही दिन की वस्ल की ये रात है ,
क्यों इतना तुमसे ताल्लुकात रख रहे है हम ।

ये सब्र जानाँ और बांध कर रखो ,
एक मुफ्लिसी के दौर से गुज़र रहे है हम ।

जिन बादलों ने हमको ढक के रख लिया ,
उन बादलों के ऊपर खिल रहे है हम ।

महीने की कोई तारीख़ तय करो ,
रोज़ मिल रोज़ बिछड़ रहे है हम ।



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