Posts

Showing posts from September, 2020

इक बोसा

शांत दिन लगभग सब स्थिर बस वक़्त ही दौड़ रहा था । हर पल ऐसा ही प्रतीत हो रहा था की कब समय आए और एक जगह से प्रस्थान करे ताकी दूसरी जगह आगमन हो सके । नगर तो नहीं कहेंगे मगर नगर से कुछ कम भी नहीं था जहां पर नगर के सारे सुख परंतु उनका उपभोग ना किया जा सके । उसी समय एक ऐसा कृत्य कर बैठे जिसका कर्ता तो मैं था मगर उसका समर्थन कभी भी वैचारिक और व्यावहारिक तौर पर नहीं करता था। तात्कालिक सामाजिक माहौल से प्रभावित होकर ( जो ट्रेंड में था ) जो शायद आज भी बदला नहीं है वो अमर्यादित कार्य जो मेरे नजरिए में है वो कर बैठे । हर किसी को इतनी बड़ी बात नहीं लगती मगर बात बड़ी ही थी । सुनी सुनाई बात यही थी प्रेयसी अपने प्रेमी के समक्ष कभी घबराती नहीं है परन्तु मेरे साथ तो सब उलट था । समाज में भूतपूर्व आशिकों के द्वारा बनाई धारणा के अनुसार मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मेरे साथ तो कुछ  है ही नहीं । एक लड़की बमुश्किल पसंद आई वो भी सामने कुछ जाहिर ना करे , समझ ही ना आए किस बात को लेकर मन में धारणा बनाए की उसे भी हमसे इश्क़ है । सबने तो यही कहा था की लड़कियां पहल नहीं करती पहले झुकना तो लड़कों को ही पड़ता है । लेकिन

मन की भड़ास

मानो सब कुछ थम सा गया हो । दिल की हर एक धड़कन में , धमनियों में रक्त प्रवाह का पता चल रहा था । दिमाग भी कितना बेईमान होता है मन को स्थिर करने की बजाय मन जिधर ले जा रहा उसी के पीछे हो लिया । चिंताओं के बादल चारों तरफ इस कदर चढ़ गए जैसे प्रलय के आने का अंदेशा हो और हुआ भी आखिर वही । माथे से पसीने की धारा इस तरह बह रही थी जैसे रुके हुए नदी के जल प्रवाह को निकलने की जगह मिल गई हो । पंखा अपने प्रचंड रूप में चल कर भी अंदर की प्रचंड गर्मी को शांत करने में कामयाबी हासिल नहीं कर पा रहा था । मोहब्ब्त की सारी आकांक्षाएं धरी की धरी प्रतीत जान पड़ती । एक आखरी स्पर्श को तरसते हाथों की उंगलियों से पूछो की अपनों को छोड़ कर जाने पर आखिरी स्पर्श ज़िन्दगी की बैटरी में कितनी ऊर्जा भरने का काम करता है । हां कुछ शर्मिंदगी ज़रूर होती है समाज को दिखाने में क्योंकि आप के निजी सम्बन्ध कभी समाज स्वीकार नहीं करता । अब वो चाहे समाज की अपरिपक्वता को दर्शाता हो या फिर हमारे भीतर बैठे संकोच और एक सामान्य सा डर की लोग क्या कहेंगे । लेकिन आज की पीढ़ी इस डर को पीछे छोड़ ज़िन्दगी के हर लम्हे अपनी स्वछंदता से जीने लगी है

तिरी याद मिटाए जा रहा हूं मैं

ख़्वाबों को तस्लीम कर हटाए जा रहा हूं मैं , तुझपर कितना वक़्त लुटाए जा रहा हूं मैं , तुम कह रही की खाली बैठा रहता हूं , तसव्वुर से तिरी याद मिटाए जा रहा हूं मैं । मेरे अश्क़ बुझा देंगे जलन मेरी ; सोचा था , कम्बख़त आग और भड़काए जा रहा हूं मैं । क्यों ना करूं नफ़रत उसकी निगाहों से , मुद्दतों से जिनकी यादों का सताए जा रहा हूं मैं । उस तिल के उभार पर किसी और का बोसा सह जाना , देख तेरी बेवफ़ाई सरेआम बताए जा रहा हूं मैं ।

ज़मीं भी उसको आहटों से जानने लगी

ज़मीं भी उसको आहटों से जानने लगी , ये कब्र मेरी धड़कने पहचानने लगी , बेवफ़ाई की तोहमतें लगा रही थी ना , फ़िर क्यों आजकल ख़ाक छानने लगी । इतने साल बात करने की इनायत ना हुई , ये कैसा इश्क़ तुम हमसे निभाने लगी । इतने दिनों बाद नींद दस्तक दे रही है , फ़िर तिरी याद मुझको आने लगी । तुम्हारी वफ़ा पर और भरोसा क्या करे , मुझसे ज्यादा गैरों की बात जब मानने लगी ।

मंज़िल तक साथ अब निभाना नहीं है क्या

अपने चाहने वालों को दिखाना नहीं है क्या ? अब किसी और से दिल लगाना नहीं है क्या ? इन आंखों में क्यों इतना मशगूल हो गई , आज फ़िर पलकों को झुकाना नहीं है क्या ? तेरे चेहरे से पहली दफ़ा घूंघट उठाया है , होठों पर तबस्सुम रख शर्माना नहीं है क्या ? गुज़ार तो लें ज़िन्दगी बस तुम्हें देखकर , तुम्हारे अलावा और ज़माना नहीं है क्या ? आधे राह से ही लौटने का मन बना लिया , साथ मंज़िल तक अब निभाना नहीं है क्या ? इस मसाफ़त का कोई इलाज़ ढूंढ़ लो , पास आने का कोई बहाना नहीं है क्या ? कितने दिन हिज़्र की रातें गुजारेंगे , तुमको मिलने अब यहां आना नहीं है क्या ?

।। मगर दिल अबतक भूला नहीं है ।।

हमें जीने की और तमन्ना नहीं है , तुम्हारे बिना और जीना नहीं है । बातें ना की एक लफ्ज़ भी उन्होंने , कैसे कहें वो खफा नहीं है ।। नज़रें मिला कर झुका ली उन्होंने , ये कैसा था इश्क़ जो हुआ नहीं है ।। ज़रा सा निगाहें उठा कर तो देखो , कि मंज़र अभी कुछ बदला नहीं है ।। वो शख़्स ही बताए मनाए उसको कैसे , जो शख्स अब तक मना नहीं है ।। तुम्हें भूलने का दावा करें है , मगर दिल अबतक भूला नहीं है ।।

रूलाए जा रहा मुझे

तुम्हें ख़्वाब में देखने की ज़िद सुलाए जा रहा मुझे , तेरा बेवफ़ा हो जाना रुलाए जा रहा मुझे । दिन भी गुजर रहा खाली रातें भी गुजर रही , धीरे ये अकेलापन खाए जा रहा मुझे । एक गई फिर कई आएंगी इश्क़ का बाज़ार है ये , कई बरसों से यार मेरा समझाए जा रहा मुझे । एक तड़प तेरे जाने और एक मिल जाने की , तेरी याद में मेरा मन खुद भुलाए जा रहा मुझे ।