तेरी ख़ामोशी में गुफ्तगू का सिलसिला कैसा
तेरी ख़ामोशी में गुफ्तगू का सिलसिला कैसा ,
तेरा दीदार करने में आंखों का मसअला कैसा ,
तुम हो नहीं नाराज़ गर उस एक बोसा से ,
होठों पर तबस्सुम आंखों में फिर ज़लज़ला कैसा ।
तुमने बेवफ़ा कहकर उसे ठुकरा दिया था ना ,
इतनी तोहमतों के बाद दिल में दाखिला कैसा ।
इश्क़ के सफ़र में जब तुम्हें अकेले चलना है ,
कहो ' गुमनाम ' इन गुमनामियों में काफ़िला कैसा ।
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