तभी से तुम तसव्वुर में और ये आंखें नमनाकी है ।

ज़िंदा है वही जिसमें थोड़ी बेबाकी है ,
इश्क़ गर तुमसे कर बैठे इसमें कैसी चालाकी है ?

जबसे रोते तुझको छोड़ गए तेरे आंगन से ,
तभी से तुम तसव्वुर में और ये आंखें नमनाकी है ।

गुज़र जाती है रातें अक्सर तेरे खयालों में ,
मेरी जानाँ कई रातों की मेरी नींद बाकी है ।

चलेंगी सांस कब तक और इन अंधेरे कमरों में ?
ये कैसी ज़िन्दगी मौला मेरे तुमने अता की है ?

सालों से तुझे इक पल देखने की गुज़ारिश है ,
कहो किसपर अदा तुमने अपनी फ़िदा की है ?

फ़िज़ूल इश्क़ है अपना ओ गर फिजूल सारी बातें है ,
कलम तुम सिर मेरा करदो अगर मैंने खता की है ।

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