पूरा जग उमड़ा था तेरी तमाशाई में

झुंझलाते क्यों हो बालू की चिकनाई में ,
उतर कर देख लो फिर थोड़ी गहराई में ,

मुझमें तेरे सिवा और कुछ बाकी कहां ,
तोहमतें भी चाहिए रुस्वाई में ।।

तेरे तोहफ़ो को भी देखने के मोहताज नहीं हम ,
कई अब्द हुए अपनी बज़्म - आराई में ।।

बिस्तर की सिलवटों को देख लग रहा,
रात गुज़री है वाकई बड़ी तन्हाई में ।।

उस भीड़ में हम दिखते भी कहां , 
पूरा जग उमड़ा था तेरी तमाशाई में ।।

गर तुम जाना ही चाहती हो फिर चली जाओ ,
कुछ नहीं रखा बात की सच्चाई में ।।


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