ज़नाज़ा खानदानी चाहिए

मेरी जां कुछ वफ़ाई तुम्हें भी निभानी चाहिए ,
मेरे सिवा और भी क्या जिंदगानी चाहिए ,

इन निगाह से निकल कर आओ इनके सामने ,
आंखें दरिया बन गई और कितना पानी चाहिए ।

एक बोसा ही बहुत था तेरे उन रुखसार पर ,
और इश्क़ में तुम्हें क्या निशानी चाहिए ।

तुम चली हो गई दुनिया सरी बंजर हुई ,
फ़िर भी कहती हो जमीं पर गुल-फिशानी चाहिए ।

पस-अज़-मुर्दन आकर तुर्बत पे मेरी रोना नहीं ,
कह रहा 'गुमानम' ज़नाज़ा खानदानी चाहिए ।।


गुल-फिशानी - sprinkling flower
पस-अज़-मुर्दन - after death
तुर्बत - कब्र 

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