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Showing posts from October, 2020

रावण ने रावण को जलाया क्यों है

हर तरफ़ धुंध ही धुंध छाया क्यों है ? लोगों ने बत्तियों को बुझाया क्यों है ? आज भीड़ ने खुद को इक शक्ल में रखा है , हर शख़्स यहां पर ख़ुदा-या क्यों है? बुराईयों को पुतले में पेश कर रहे है वो , ऐब है तो फ़िर इतना सजाया क्यों है ? आंखों पर बंधी पट्टी हटा कर देखो , रावण ने रावण को जलाया क्यों है ? जब भरोसा है कि वो निर्णय लेगा एक दिन , फ़िर आज हमने ईश्वर को आज़माया क्यों है ? तुम अपनी नज़रें क्यों झुका रहे ' गुमनाम ' , जब जानते नहीं उन्होंने ठहाका लगाया क्यों है ?

कब तक जिंदा रखेगी ये बेहोशी मुझको

नज़रों से कितना घायल करेगी वो नक़ाबपोशी मुझको , मंज़िल भटका देते है ये बला-नोशी मुझको , उन आंखों ने कुछ तो जलवा बिखेरा है , ज़िंदा रखे है उनकी मदहोशी मुझको । भिखारी के शक्ल में लुटेरे आ गए है फ़िर , और कितना लुटाएगी ये फ़रामोशी मुझको ।। बेबाकी से कभी तअल्लुक रहा नहीं मेरा , मार डालेगी एक दिन ये ख़ामोशी मुझको । ज़मीर मारकर सांसे तो बचा लेंगे मगर , कब तक जिंदा रखेगी ये बेहोशी मुझको ।

इश्क़ ज़ख्मी भी है और ज़ख़्म भी ।

तेरा कहर भी देखा मैंने और रहम भी , इश्क़ भी तेरा और ये सितम भी , तुझे ख़्वाब से जाने की इजाज़त क्या दे , तू भी साथ है मेरे और ये वहम भी । कौन किसके ज़ख़्म पर पट्टी बांधता फिरे , इश्क़ ज़ख्मी भी है और ज़ख़्म भी । तेरी निगाहों से गिर कर जाएंगे और कहां , मेरी शुरुवात भी तुम्हीं और ख़त्म भी । शब-ए-हिज़्र में ख़्वाब से भी बिछड़ने का वायदा रहा , झूठा था दिलासा तेरा और झूठी कसम भी ।

कितनों के तुम और पसंदीदा हो गए

तुम्हें सूरत-ए-हाल देख शोरीदा हो गए , रौनक-ए-महफ़िल में भी संजीदा हो गए , *शोरीदा - परेशान        *संजीदा - गंभीर रात भर तुमने किसी की याद में गुज़ार दी , सुबह सुबह ही तुम जो ख़्वाब-बीदा हो गए । * ख़्वाब बीदा - नींद में  तेरी ज़ुल्फ से जितना बच सकते थे बचे , मगर होंठ के तिल पर गिरवीदा हो गए । * गिरवीदा - मुग्ध  किसकी आमादगी थी उस वस्ल की रात में , कितनों के तुम और पसंदीदा हो गए । * आमादगी - रज़ामंदी      * वस्ल - मिलन देखा था उसके चश्म में नज़र अपनी उतारते , इक सवाल पर ही लर्जीदा हो गए । * चश्म - आंख     * लर्जीदा - कांप जाना उनका भी शुक्रियादा कर दो ' गुमनाम ' , जिनकी बेवफ़ाई से तराशीदा हो गए ।। * तराशीदा - तराशा हुआ 

ये सब्र इश्क़ का

ये सब्र इश्क़ का ख़ानुमाँ-ख़राब बन गया ,  तेरा चुप रहना ही जवाब बन गया , वो हारता रहा कई सदियों तक मगर , इक दिन वो भी ज़फर - याब बन गया । तुम्हारा वायदा कुछ दिनों तक वायदा रहा , वो भी ना जाने कब एक ख़्वाब बन गया । डूब ख्वाहिशों के सफ़ीने सारे गए , इन अश्कों में जो आज सैलाब बन गया । तुमने तो कभी रूठ कर शिकवा ना किया , ये ज़ख्म - ए - दिल कैसे ख़ूनाब बन गया । शम्स को अपने होने का था बहुत गुरूर , इन बादलों ने घेरा तो माहताब बन गया । हुज़ूर ने क्रूरता की फूंक क्या मारी , वो चिंगारी से इंकलाब बन गया । * ख़ानुमाँ - ख़राब - भग्यहीन/बेघर * ज़फ़र-याब - विजयी * ख़ूनाब - खून के आंसू * शम्स - सूरज * माहताब - चांद

ये भूल जाने की कैसी खुमारी है

तेरे ख़्वाब का आना अब भी जारी है , ये भूल जाने की कैसी खुमारी है , तेरी तस्वीर जो रखी थी जला कर आ गए , उसकी राख से हमने नज़र उतारी है ।। तुझे भूलने का कल से सौदा करके आ गए , मगर आज मिलने की बेकरारी है ।। इन हिज़्र के दिनों उनके हाल जान लो , तेरी ज़ुल्फ में जिसने कई शामें गुज़ारी है ।। उस बोसा के अलावा सब वाहियात था , मगर जंग भी हमने वहीं पे हारी है ।।

पूरी शाम बाकी है

कितनी उम्र गुज़ार ली मगर तमाम बाकी है , इतनी जल्दी ना जाओ बहुत काम बाकी है । कब थमेगा ये सफ़र कोई जानता नहीं , अभी तो केवल दिन गुज़रा है पूरी शाम बाकी है । सब चरणों में शीश नवाए बैठे है सरकार के , और हुज़ूर कह रहे की अभी सलाम बाकी है । ख्वार - ए - हुस्न उतरा नहीं जो आंखों से चढ़ा गई , ये होंठ अब भी कह रहे की जाम बाकी है । ताश , सिगरेट और शराब सब आज महफ़िल में है , और कहो महफ़िल में क्या इंतजाम बाकी है । बहुत दूर तल्ख़ जाना है अभी तो ये शुरूआत है , अभी से कह रहे ' गुमनाम '  कयाम बाकी है ।