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Showing posts from July, 2020

कैसे फिर बहार ए चमन आएगा ?

कर्म बुरे हो किए तो फिर बुरा ही ज़मन आएगा ? हवा का आइने में कैसे अक्स-फ़गन आएगा ? वज़ारत जब जुबानों पर जा टिकी हो , तो कैसे फिर माथे पर शिकन आएगा ? गुलज़ार दीवार - ओ - दर की ज़द में हो , कैसे फ़िर बहार - ए - चमन आएगा ? तुम्हारा होना पुरखों की गलतियों का नतीजा हो ,  कैसे फिर इन उंगलियों में फ़न आएगा ? दूर कहीं वो किसी और की ज़िन्दगी में है , कहो कैसे फ़िर इस ज़िन्दगी में सुख़न आएगा ?

आधे राह उतर जाना ज़रूरी है क्या ?

मेरी ख्वाहिशों का मर जाना जरूरी है क्या ?  तेरा शहर जाना जरूरी है क्या ? अपनी बेबसी को मार कर पूछो , इतने दिन ठहर जाना जरूरी है क्या ? मिलन के बाद का पहला त्योहार है ये , तुम्हारा घर जाना ज़रूरी है क्या ? आज तो पूरा चांद निकला है , साहिल - ए - बहर जाना ज़रूरी है क्या ? अब तो इश्क़ की कश्ती पर सवार हो लिए , आधे राह उतर जाना ज़रूरी है क्या ? तुम्हारे होठों की सिलवटों पर भी मर मिटेंगे , मगर ये उमर जाना ज़रूरी है क्या ?

मालिक रातों की ज़द में है

सब आवारा हुए ; खाली रैन - बसेरा क्यों है ? ईमानदार सब हो गए ; नेता लुटेरा क्यों है ? आसमां में जब सूरज उगा है , फ़िर सारे जहां में अंधेरा क्यों है ? जब मालिक रातों की जद में है , फ़िर नौकर के घर सवेरा क्यों है ? जिस पेड़ का एक तिनका भी ना बचा , उसपर फ़िर परिंदों का बसेरा क्यों है ? उनके हिस्से में हिज़्र की रातें नहीं है क्या ? इश्क़ में सारा ज़र्फ़ सिर्फ़ मेरा क्यों है ? तुमने तो कहा था कि क़त्ल करना छोड़ दिया है  , फ़िर चेहरे पर इन जुल्फों को बिखेरा क्यों है ? हर खुशी तुम्हारे साथ है जानाँ , फ़िर दूसरी तरफ़ तुमने मुंह फेरा क्यों है ?

भटकों को राह दिखाना पड़ता है ।

भटकों को राह दिखाना पड़ता है ,  इश्क़ भी क्या जताना पड़ता है ? किसकी नज़रें कितनी ज़्यादा क़ातिल है , ये बतलाने आंख मिलाना पड़ता है । हमने देखा तुमने देखा इश्क़ हुआ , इसमें किसका खून बहाना पड़ता है । आसां होते तो सारे रिश्ते टिक जाते , मेरी जानाँ साथ निभाना पड़ता है । कच्चे रिश्ते रहकर साथ तड़पाते है , भोजन भी खुद ही पकाना पड़ता है । यूं ही ख्वाहिश खत्म थोड़ी हो जाती है , इसके खातिर दिल जलाना पड़ता है । जितनी ज्यादा याद तेरी आ जाती है , उतना ही मलहम लगाना पड़ता है ।

बताए खुद ही वो शख्स इतना मुब्तला क्यों है ?

दिन आए है गर अच्छे तो फिर इतनी बला क्यों है , तेरे दीदार करने का , नहीं कोई मशगला क्यों है ? जो कहते थे बहुत खुशियां पड़ी है अपने आंगन में , बताए खुद ही वो शख्स इतना मुब्तला क्यों है ? ज़िंदा रहना और मरना यहां दोनों ज़रूरी है , कम्बख़त ये नाकाबिल ज़िन्दगी इतनी मरहला क्यों है ? उजाड़ी कोख हो जिसने मिटाएं हो कई सिंदूर , कहो "गुमनाम" तिरी सरकार में वो फूला - फला क्यों है ?