इश्क था या जो भी तुमसे अब दुबारा न हो पाएगा ।।

खटकता हो जो आंखों में आंख का तारा न हो पाएगा ,
लगा लो जितनी ताकतें नकारा न हो पाएगा ,

तुम्हारे कोई ख़्वाब में है आंखे डूबी है हुई ,
ऐ इश्क़ इजहार कर दो इशारा न हो पाएगा ।

हौसला ही ना हो जब उठ कर चलने का तो फ़िर ,
लगा लो जितनी हो बैसाखियां सहारा न हो पाएगा ।

साथ होती तुम अगर हम भी होते अब्द तक ,
अब नहीं हो तुम तो फिर गुज़ारा न हो पाएगा ।

निकाल कर खंजर से चाहे दिल को रखो पास तुम ,
हो चुका है जो अब उनका तुम्हारा न हो पाएगा ।

लाख होती ऐब तुझमें सिर से चाहे पैर तक ,
इक तेरा बेवफ़ा हो जाना गवारा न हो पाएगा ।

कर रही हो शक तो फ़िर रिश्ता मुकम्मल है कहां ?
इश्क़ था या जो भी तुमसे अब दुबारा न हो पाएगा ।

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