तिरस्कार
तिरस्कार जिन उम्मीदों के साथ होली का त्यौहार मानाने घर पे आए थे उन मंसूबों पर तो पानी पड़ चुका था होली न मानाने का पछतावा तो कई सालों तक रहता है परन्तु इस साल होली मानाने का पछतावा हो रहा था | ना कोई रंग , ना कही वो भांग से मिली ठंडाई , ना कही लोगो का लोगो के प्रति प्यार और ना ही लोगो पर होली का नशा | क्यों लोग त्यौहार व उत्सव मानते है ?? लोगो के अन्दर लोगो के प्रति कम से कम त्यौहार के दिन तो सभी द्वेष मिट जाने चाहिए जिसका इलाज सिर्फ त्यौहार है | उस पर भी भेदभाव के ग्रहण रुपी छाया पड़ने लगी है , लोग आज भी भेदभाव के गिरफ्त में जकड़े हुए है जाति के भेदभाव को मिटाते ही रहे कि स्टैण्डर्ड रुपी भेदभाव का आगमन चालू हो गया | हम दूसरों के प्रति क्या सोचते है ये ज्यादा मायने नहीं रखता बल्कि ये मायने रखता है की दूसरे हमारे प्रति क्या सोचते है | बड़ो के बीच बड़े ही रहे तो ज्यादा अच्छा रहता है समारोह में उनके बीच रहने पर जो अकेलेपन एहसास होता है वो मुझसे बेहतर ही कोई शायद समझ पाए | मुझको न पहचानने वाले मुझसे ना मिले तो इस पर खलता नहीं है परन्तु सब जानकर समाने स