तेरे गाल के एक बोसा ने मुझको पागल कर डाला ....

इश्क़ में जानां थे अधूरे आज मुकम्मल कर डाला ,
तेरे गाल के एक बोसा ने मुझको पागल कर डाला ....

आंखे उसकी गर्दिश और हम उसके इक तारे थे ,
आंखों का तारा कहकर उसने आंखों से ओझल कर डाला...

दिल से निकाला बड़े प्यार से पलकों पर बैठाया था ,
फिर अपने खाली दिल को उसने और भी चंचल कर डाला ...

झूठ ही कहते कुछ न होगा तेरे रुखसत होने से ,
तेरी याद में आंखो को सावन का बादल कर डाला ...

बेवफा की तोहमत देकर उसने दिल से बेघर कर डाला ,
खुद को मैंने दुश्मन की आंखों का काजल कर डाला...

कहती थी मेरे जाने के सदमे तुम कैसे झेलोगे ,
दिल को यारों इन सदमों से रोज़ मुसलसल कर डाला ....

Comments

Popular posts from this blog

उनके रोने से अच्छी है शिकस्तगी अपनी ।

कहिया मिलन होई मोर सजनिया ...

वो खत ।