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Showing posts from February, 2022

मेरी खूबसूरती फ़िर कितनी ख़ूबसूरत होगी

जाने किसके आंखों की शरारत होगी , होगी किसी के बाहों में तो सलामत होगी , ये निगाहें जो तुम औरों से मिला बैठी हो , ये बात जीने के लिए कितनी गैरत होगी ।। अख़बारों में खबरों की खाक छानती हो , मौत की खबर मेरी , बशीरत होगी ।। मेरी बदसूरती से तुम इश्क़ जो कर बैठी हो , मेरी खूबसूरती फ़िर कितनी ख़ूबसूरत होगी ।। वस्ल की रात और ये ख़ामोशी , बेवफ़ाई में न जाने कब ज़मानत होगी ।। बड़ी ख़ामोशी से बाहर बैठे हो ‘गुमनाम’, होगी तो आज की रात बहुत कयामत होगी ।।

सत्तर सालों से केवल वो सत्ता सत्ता खेल रहे ।।

लोगों खातिर लोकतंत्र सब अंधा हो गया , इस पूंजीवाद में हवा का भी धंधा हो गया ।  अपने ही लोग मर रहे मगर चुनाव जिंदा है , नेता जब हुए जनावर अब कोरट भी शर्मिंदा है ।। दुर्दशा का हाल देख लो मध्य क्षेत्र की झांकी है , धीरे धीरे मेरी जानां सारा देश बाकी है ।। बेड स्ट्रेचर नेता खा गए लोग भी सांसे खो रहे , उठा लाओ वो सारे बिस्तर जिसपर नेता सो रहे ।। माना चुनाव सब जीत गए पर मानवता तो हारी है , बिछ गई लोगों की लाशें मगर ये उत्सव जारी है ।। लोकतंत्र के नाक के नीचे राजशाही का दंश झेल रहे , सत्तर सालों से केवल वो सत्ता सत्ता खेल रहे ।। हाहाकार मचा हुआ है शहरों और अखबारों में , मौज काट रहे सारे नेता सत्ता के गलियारों में ।। खाने को क्या पड़े है लाले जो लाशों से कमाएंगे , श्मशान नहीं है खाली फिर संसद में लोग दफनाएंगे ।। समाजसेवियों पर केस हुआ अब सेवा भी शर्मसार है ,  ऐसे राज्य के सिस्टम पर लानत और धिक्कार है ।।

पलकों से उतार न देना किसी मोड़ पर

 पतझड़ है ये भी गुज़र जाएगा , फूलों पर लौट कर भंवर आएगा , पेड़ तो सदियों से पतझड़ देख रहे , डालियों के सजने का अब पहर आएगा । पलकों से इसी बात की कशमकश हो रही , हल्की रही तो इनपर से कोई गिर जाएगा । पलकें बिछाने की ख्वाहिश भी है , कोई बैठेगा इनमें तो ठहर जाएगा । जिस तरह आंखें भर कर देखती हो तुम , कोई उतरेगा इनमें तो डूबकर ही मर जाएगा । होंठों पर लालियां भी आर्टिफिशियल लग गई , जाने कितनो का चहरा इनसे संवर जाएगा । एक तीर अपनी आंखों से छोड़ भी देना , जिसको लगेगी वहीं पर बिखर जाएगा । पलकों से उतार न देना किसी मोड़ पर , कोई बैठेगा खुद ‘गुमनाम’ फ़िर उतर जाएगा ।।

बजट 2022-23

शुरुवात में कोरोना काल में हुई प्रभावित पढ़ाई की चिंता कर 200 चैनलों की शुरुवात की है । शिक्षा मंत्रालय अब तक क्या कर रहा था । उसे ये नहीं पता था कि पढ़ाई प्रभावित हो थी है या सारा काम वित्त मंत्रालय का ही है । सरकार उस वक्त भी महत्वपूर्ण कदम उठा सकती थी जबकि दो साल बीत जाने पे कदम उठाए जा रहे क्योंकि अभी तक ये सरकार यह मानने को ही तैयार नहीं थी की किसी की नौकरी गई है और उनके बच्चे असमर्थ है विद्यालय जाने में । शिक्षकों के घर में ही उनके लिए डिजिटल बोर्ड या अन्य व्यवस्था की जा सकती थी जिससे वे लाइव पढ़ा पाए । दूसरी बात जल संरक्षण की अभी नमामि गंगे कार्यक्रम का ही कुछ नहीं बताया गया की वो कितना सफल हुआ कितना असफल । हज़ारों करोड़ों सा आंकड़ा हमेशा बताया जाता है उसका उपयोग कहां हुआ कुछ पता नहीं ना ही उसका ब्यौरा दिया गया । जब विजन ही 5 साल का था तो ब्यौरा एक साल में कोई मांगेगा भी नहीं । ये मैनेजमेंट वालों ने चालाकियां कर गर्त कर दिया । कह रहे है पांच नदियों को जोड़ेंगे ये नहीं पता की जिस गांव के बगल से नदी जा रही वहां के लोग नदी से सिंचाई नहीं कर रहे उसकी व्यवस्था कीजिए लोग भूजल की जगह अ