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Showing posts from August, 2021

सूनी है सूनी ही रह जाती है

सूनी है सूनी ही रह जाती है , ज़िंदगी भी कितना आज़माती है , इस तरह रुखसत हो कर जाती हो , आखिरी इक मुलाकात रह जाती है ।। सीने पर वार नहीं कर पाती जब , सारी दुनिया फ़िर गले लगाती है ।। इश्क़ की बिसात पर जब हो ज़िंदगी , मोहरे सारी वहीं धरी रह जाती है ।। बेड़ी तोड़ने का क्यों पाप कर रहे , इक रात है जिसमें बेड़ियां खुल जाती हैं ।। सपने तो सच हो भी सकते है , हक़ीक़त सिर्फ़ यादें बन रह जाती है ।। मिली कहां जो तुमको हम खो दिए , मिल बिछड़ते सदियां बीत जाती है ।।

ख़ुद को भूले है मगर तुम याद आती रही

इश्क़ के पैगाम में बे-दाद आती रही , दूसरे मुल्क से लोगों की तादाद आती रही , कह रहे थे हम तुम्हें आज़ाद करने आ रहे , ज़िंदगी खुद बन कर फसाद आती रही ।। आंखे बंद हो गई राह तेरी तकते तकते , आसमां से भी किसी की परी-ज़ाद आती रही ।। भूलने के वायदे का क्या हिसाब करे , ख़ुद को भूले है मगर तुम याद आती रही ।। काफ़िर कह कर उन्होंने मशहूर इतना कर दिया , मर जाने के लिए मुबारकबाद आती रही ।। खुदा बनने बाद भी “गुमनाम” रोता रहा , जाने कितने लोगों की फ़रियाद आती रही ।

तुम कह रही थी

तुम कह रही थी की गुज़र जाएगा , तेरी याद का दौर है  जब जी रहे तो साथ है और  शायद धूमिल होने के बाद भी  किसी पन्ने पर लिखावट बन  किसी क़िताब में कैद रह जाएगा । अपना इश्क़ भी किसी कैदी सा ही रहा , आंखे दूर तलक आज़ादी खोजती  मगर सिमट के एक बंद कमरा  जिनमें दीवारों की दरख्तों से  तुम्हें निहार कर खुश देखने की कशिश में उस वक्त के खुशनुमा पल का  बेरहमी से कत्ल करना  वो पल कुछ कातिल सा रहा । मौसमी हवा को छोड़ जाना , कृत्रिम रूप को अपनाना  बारिश की बौछारों का मज़ा  पाइप से  उन बौछारों का आनंद लेना  तेरे मखमली कपोल पर सिरहाने रखी तकिया मोड़ कर उसको चूमना  सब भूल तेरी यादों में खो जाना  तुझे सपनों में पाने के लिए  चाहता हूं मैं सो जाना ।  

खामोशी से इश्क़ हम जताए कैसे

लोगों को अपने खातिर भगाए कैसे , साथ है फिर साथ हम निभाए कैसे , नज़रों ने पलकों की चादर ओढ़ी है , खामोशी से इश्क़ हम जताए कैसे ।। ये आंखे सिर्फ़ तुमको तकना चाहती है , लोगों की आंखों को बहकाए कैसे ।। ज़िंदगी से उलझ हमने इश्क़ कर लिया , ये इश्क़ की पहेली अब सुलझाए कैसे ।। एक पहिया हो तुम मेरी जिंदगी का , ये भरोसा तुमको हम दिलाए कैसे ।। वस्ल की रा।त में भी नाराज़गी , एक बोसा से हम मनाए कैसे ।

कह रहे हो प्यार तुमको बेशुमार हो गया

जो कह रहा उसको इश्क़ का खुमार हो गया , दोस्तों वो आधा यूं ही बीमार हो गया , तुमने हिज्र की रात क्या गुज़ार ली , कह रहे हो प्यार तुमको बेशुमार हो गया ।। उसके ज़ुल्फ की छांव में जो बैठ गए , बरसों के लिए तीमारदार हो गया ।। पलकें उठा कर गिराने का ये सिलसिला , आधे गांव का जीना दुश्वार हो गया ।। आंखों में धारियां उसके द्वार जो लगा लिया , उसका चश्म और भी धारदार हो गया ।। खुशमिजाज़ी में कौन हिज़्र पर लिख रहा , शाइर जाने कितना लाचार हो गया ।। एक नज़र 'गुमनाम' भी देखने चले गए , सोमवार से एक इतवार हो गया ।।