लोगों खातिर बैसाखियां बनाते हुए ।।

लगेगा दिल खुद्दारियां दिखाते हुए ,
ख़ुद के घर जले बस्तियां जलाते हुए ,

खुद के पैर हम भूल बैठे हैं ,
लोगों खातिर बैसाखियां बनाते हुए ।

जिंदगी भर राह में कांटे बिछाए थे ,
क्यों रो रहे फ़िर अर्थियां उठाते हुए ?

दिल के सारे राज़ वो खोल बैठे है ,
चेहरे से बेताबियां छुपाते हुए ।

डूबा दोगे निबाह साथ तुम " गुमनाम " ,
लोगों से अपनी नेकियां गिनात हुए ।।

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