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Showing posts from August, 2020

तेरी ख़ामोशी में गुफ्तगू का सिलसिला कैसा

तेरी ख़ामोशी में गुफ्तगू का सिलसिला कैसा , तेरा दीदार करने में आंखों का मसअला कैसा , तुम हो नहीं नाराज़ गर उस एक बोसा से , होठों पर तबस्सुम आंखों में फिर ज़लज़ला कैसा । तुमने बेवफ़ा कहकर उसे ठुकरा दिया था ना  , इतनी तोहमतों के बाद दिल में दाखिला कैसा । इश्क़ के सफ़र में जब तुम्हें अकेले चलना है , कहो ' गुमनाम ' इन गुमनामियों में काफ़िला कैसा ।

आ गई तुम मेरी रातें बिगाड़ने

क्या आ गया शेर खुले में दहाड़ने , लग गए गीदड़ गला फाड़ने , एक गाड़ी रास्ते में क्या पलट गई , लग गए अपराधी मानवता झाड़ने ।। एक पत्ती ने हिलने की खता क्या करी , लग गए लोग सारे पेड़ उखाड़ने । एक फ़ोन ने तेरे मेरा सब्र तोड़ दिया , आ गई तुम फ़िर मेरी रातें बिगाड़ने ।  वो भीगे बाल लेकर बाहर क्या गई , आ गया सारा मोहल्ला ताड़ने ।।

कई है किस्से फिर से उन पर लाद आया

 कई है किस्से फ़िर से उनपर लाद आया , तुम आई और मुरत्तब रूदाद आया , ख़ामोशी ओ दूरियों की जद में रिश्ते है , नज़रों के नज़रों का उफ्ताद आया । बरसों बाद जो देखा तुझको जी भर के , आहिस्ता वो इश्क़ पुराना याद आया । तेरी जुल्फों को छूकर क्या नज़रें गुज़री , दिल के फ़िर पिघलने का फरियाद आया । तुझपर पहला हक मेरा होना था , क्या खता की मैं ही सबसे बाद आया ।

तभी से तुम तसव्वुर में और ये आंखें नमनाकी है ।

ज़िंदा है वही जिसमें थोड़ी बेबाकी है , इश्क़ गर तुमसे कर बैठे इसमें कैसी चालाकी है ? जबसे रोते तुझको छोड़ गए तेरे आंगन से , तभी से तुम तसव्वुर में और ये आंखें नमनाकी है । गुज़र जाती है रातें अक्सर तेरे खयालों में , मेरी जानाँ कई रातों की मेरी नींद बाकी है । चलेंगी सांस कब तक और इन अंधेरे कमरों में ? ये कैसी ज़िन्दगी मौला मेरे तुमने अता की है ? सालों से तुझे इक पल देखने की गुज़ारिश है , कहो किसपर अदा तुमने अपनी फ़िदा की है ? फ़िज़ूल इश्क़ है अपना ओ गर फिजूल सारी बातें है , कलम तुम सिर मेरा करदो अगर मैंने खता की है ।