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उनके रोने से अच्छी है शिकस्तगी अपनी ।

गैर हो गई ज़िंदगी अपनी , जब समुंदर से बड़ी तिश्नगी अपनी , रुसवा है , तंग है , ये राहें भी , छोड़ आए अब दिल्लगी अपनी ।  दर्द जिंदगी के अधूरे होने का नहीं, ये जो नामुकम्मल रही आवारगी अपनी । वो हंसे बस मामलात इतना भर था , उनके रोने से अच्छी है शिकस्तगी अपनी । मुफलिसी में अपनों की हिदायत से ,  लाख अच्छी है बेगानगी अपनी । उनकी एक बेफाई से ही रो रहे गुमनाम , कैसी नामर्दानी है मर्दानगी अपनी ।।

हम तमाम उम्र देख कर भी गुनहगार हो गए ।।

इज्ज़त थी इसीलिए तार तार हो गए , एक पल में ही वो आपके शहरयार हो गए , वो एक नज़र देखे क्या खूब देखे , हम तमाम उम्र देख कर भी गुनहगार हो गए ।। वो आए पल भर में आशियां उजड़ा , हमारे ख्वाब सारे उनके साया-दार हो गए ।। मोहब्बत भी करो तो कई तरीके से , 'गुमनाम' एक सी करके बेज़ार हो गए ।।

बेवफाई को इतना बेकरार क्यों हो ?

इश्क़ में हमारे कर्ज़दार क्यों हो ? बेवफाई को इतना बेकरार क्यों हो ? मेरे जाने से बोझ हल्का हो गया , मगर अब भी तुम गम-ख्वार क्यों हो ? अश्क, आंखों की चौखट तक आकर पूछते है , अब भी तुम मेरे शहरयार क्यों हो ? नदी उस पार कर दूं तो रुखसत हो जाओगी, दानिस्ता पूछती हो बीच मझधार क्यों हो ? इश्क़ किसी से हो , वफ़ा का चर्चा हो , आजकल विज्ञापन से अख़बार क्यों हो ?

गिरते गिरते पलकों से तेरी

दर्द , तूने जो दिए दिल में रहने लगे है , आखों के आंसू गम कहने लगे है ।। साहिल पे दिन ढलते चलती फिजाएं , ज़ुल्फो से तेरी होकर बहने लगे है ।। मुस्काती हो सुन कर उनकी ज़ुबाने ख्वाहिश दिल के बदलने लगे है ।। बांधे जो तूने झूठे पुलिंदे, पहली ही बारिश में ढहने लगे है ।। उनकी ही बातें दिन ओ रातें , दिल में जो तेरे अब रहने लगे है ।। गिरते गिरते पलकों से तेरी , ‘गुमनाम’अब गिरकर संभलने लगे है ।।

मोहब्बत में सियासत नहीं देखी जाती

रूढ़िवादी रिवायत नहीं देखी जाती , मोहब्बत की झूठी रिसालत नहीं देखी जाती , कह रही थी उससे कोई ताल्लुक ही नहीं , उसके बाहों में तेरी शरारत नहीं देखी जाती ।। शरीफों की महफ़िल और लबों पर बोसा, हाय! ऐसी शराफत नहीं देखी जाती ।। तेरी ज़ुल्फ के छांव में उसका बैठ जाना , मुझसे तेरी इजाज़त नहीं देखी जाती ।। नाकामी आते ही तेरा चला जाना  , मोहब्बत में सियासत नहीं देखी जाती ।। न रखिए मोहब्बत के ताल्लुक हमसे , वफ़ा से बगावत नहीं देखी जाती ।। झूठों के तहों से जो एक झूठ लाई हो , उफ्फ़ ! ये वकालत नहीं देखी जाती ।।

दूर के ढोल क्या सुहाने लगे

दूर के ढोल क्या सुहाने लगे , अब हमको वो इश्क में आजमाने लगे , कुछ नाकामियों के बाद जानाँ , तुम्हें और रिश्ते पसंद आने लगे ।।    रिश्ते तोड़ने की रस्म अदायगी हो ,  बनाने में जिसको ज़माने लगे ।। मैंने सोचा की जिंदगी बसर होगी , इश्क करके अब पछताने लगे ।। कोई हो तुम्हारा तो तुमसे पूछे , बिछड़ने पर कितना याद आने लगे ।। तुम्हारे ख्वाब से फुर्सत मिलते , तुम्हारे ख्याल के शामियाने लगे ।।