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पूरा जग उमड़ा था तेरी तमाशाई में

झुंझलाते क्यों हो बालू की चिकनाई में , उतर कर देख लो फिर थोड़ी गहराई में , मुझमें तेरे सिवा और कुछ बाकी कहां , तोहमतें भी चाहिए रुस्वाई में ।। तेरे तोहफ़ो को भी देखने के मोहताज नहीं हम , कई अब्द हुए अपनी बज़्म - आराई में ।। बिस्तर की सिलवटों को देख लग रहा, रात गुज़री है वाकई बड़ी तन्हाई में ।। उस भीड़ में हम दिखते भी कहां ,  पूरा जग उमड़ा था तेरी तमाशाई में ।। गर तुम जाना ही चाहती हो फिर चली जाओ , कुछ नहीं रखा बात की सच्चाई में ।।
कुछ अच्छा नहीं लग रहा तेरे बिना , तेरे सिवा कुछ अच्छा भी तो नहीं । कौन रौशन करे अंधेरी दुनिया मेरी , तेरे सिवा कुछ उजला भी तो नहीं । अश्क बह रहे हैं उनको बहने दो , इन चश्म में ख़्वाब तिरा भी तो नहीं । लौट कर आना चाहती हो मत आओ , मेरे घर आने का कोई रस्ता भी तो नहीं । आंखें रात भर रोती रही गुमनाम , इन आंखों में कुछ बचा भी तो नहीं ।।

ज़नाज़ा खानदानी चाहिए

मेरी जां कुछ वफ़ाई तुम्हें भी निभानी चाहिए , मेरे सिवा और भी क्या जिंदगानी चाहिए , इन निगाह से निकल कर आओ इनके सामने , आंखें दरिया बन गई और कितना पानी चाहिए । एक बोसा ही बहुत था तेरे उन रुखसार पर , और इश्क़ में तुम्हें क्या निशानी चाहिए । तुम चली हो गई दुनिया सरी बंजर हुई , फ़िर भी कहती हो जमीं पर गुल-फिशानी चाहिए । पस-अज़-मुर्दन आकर तुर्बत पे मेरी रोना नहीं , कह रहा 'गुमानम' ज़नाज़ा खानदानी चाहिए ।। गुल-फिशानी - sprinkling flower पस-अज़-मुर्दन - after death तुर्बत - कब्र