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ख़्वाब - सा था इश्क़

ख़्वाब - सा था इश्क़ मेरा हकीकत से वास्ता न था , उसके अलावा उसे बताने को कोई दास्तां न था , राह क्या देखती वो मेरे आने का , उसके दर पर जाने का जब रास्ता न था । ज़िन्दगी को उसकी सब गुलिस्तां बनाने की बात करते  थे , मिलने पहुंचे तो हाथ में किसी के एक गुलदस्ता न था । हम यहां उसी के हुस्न में जो डूबे रहते थे , एक उसका दिल था जो मिलने को तरसता न था । वे लोग उसपर सब कुछ लुटा रहे थे , कम्बख़त मुझ पर तो ये बादल भी बरसता न था । वो मेरे साथ रिश्ते तब रखना चाहती थी , अब जब उसके साथ कोई रिश्ता न था । और कहां से लाते तोड़ कर चांद तारे ' गुमनाम ' ? इंसान हूं मै भी कोई फरिश्ता न था ।।

चाहता हूं मैं उसकी आंखों में खो जाना ; खो जाने दो ।।

चाहता हूं मैं उसकी आंखों में खो जाना ; खो जाने दो, जुदाई में वो गर नहीं रोना चाहती ; तो फिर मुस्कुराने दो , था कभी और है आज भी उससे इश्क़ बेइंतहां , अगर वो गैर की होना चाहती है , रोको मत हो जाने दो । कई बरसों से वो उसकी बांहों में सोना चाहती थी , सुकून से सो रही है , उठाओ मत सो जाने दो । वो कली थी रोशनी पाकर खिल गई होगी , अब उसको वही मुरझाना है , मुरझाने दो । वो तवायफ़ नहीं जो तोहफ़े देते और दिल लगा लेते , अब उसे कोई तोहफ़े दिला रहा है , दिलाने दो । उसका मुकर जाना बेवफ़ा कहे या मज़बूरी , मेरा ना सही किसी का भी साथ निभा रही , निभाने दो ।

वो खत ।

वो खत रखे भी होंगे ?  या राख बन नालियों का रुख किए होंगे , देता तोहफ़े तो रखी खिताबों में खोंस देती , वो खत भी वहीं पर शायद रख दिए होंगे । हां जला देती अगर  वो महज टुकड़े कागज़ के होते , शब्दों के नहीं एहसासों के जलने पर ज्यादा हम ही रोते । शब्दों का नज़रों से गुजर जाना , अब्सार से शुरू होकर  लबों पर जाकर थम जाना । सारे एहतमाम पर  पानी फिर गया होगा , कोई बातों ही बातों में नज़रों से गिर गया होगा । लाइन होगी कहां ? खत तो चूल्हे में जलती लकड़ियों की  रोशनी में पढ़ रही होगी , अजीब गंध है ;  देखो सहेलियां छत पर  खड़ी होकर जल रही होंगी । नहीं , वो चूल्हे पर दाल रख  खत में मशगूल बैठी हूं , उलझे भाव को समझने में  सब कुछ भूल बैठी हूं । हां तिरी बेवफ़ाई ही कुछ  ज्यादा लिखी मैंने , कहना साफ बातें भी तुम्हीं से सीखी मैंने । नहीं , उन लोगों ने ही  ज्यादा कीचड़ उछाला है , शक जायज़ भी था  उन्हीं से तो निवाला है । हां अभी तो ठिकाने के लिए छत की  छाया भी चाहिए , मुहब्बत के मुकम्मल होने को सर्माया भी चाहिए । इश्क़ का भी पैसे से ही  यहां पर है नाता , बसीरत - ए - नज़र होती  हमें भी इल्म हो पाता । हां कुछ

इश्क था या जो भी तुमसे अब दुबारा न हो पाएगा ।।

खटकता हो जो आंखों में आंख का तारा न हो पाएगा , लगा लो जितनी ताकतें नकारा न हो पाएगा , तुम्हारे कोई ख़्वाब में है आंखे डूबी है हुई , ऐ इश्क़ इजहार कर दो इशारा न हो पाएगा । हौसला ही ना हो जब उठ कर चलने का तो फ़िर , लगा लो जितनी हो बैसाखियां सहारा न हो पाएगा । साथ होती तुम अगर हम भी होते अब्द तक , अब नहीं हो तुम तो फिर गुज़ारा न हो पाएगा । निकाल कर खंजर से चाहे दिल को रखो पास तुम , हो चुका है जो अब उनका तुम्हारा न हो पाएगा । लाख होती ऐब तुझमें सिर से चाहे पैर तक , इक तेरा बेवफ़ा हो जाना गवारा न हो पाएगा । कर रही हो शक तो फ़िर रिश्ता मुकम्मल है कहां ? इश्क़ था या जो भी तुमसे अब दुबारा न हो पाएगा ।