फिर कभी
ठीक है, तुम रोज़ बातें ना करो मुझसे , लेकिन करती रहा करो मुझसे बातें कभी । बिन तेरे , बीत गई है रातें कई , और बीत जाएंगी ये तारीखे कभी । वक़्त लंबा गुज़र गया है , आओ हम रूबरू हो जाए कभी । मिलने पर तुम कहा करती थी , अभी नहीं लेकिन "फिर कभी" । सुनाए क्या दास्तां हम उस रात की , बस एक थी आरज़ू वो मुलाकात की । ये ' फिर कभी' का सिलसिला थम ही गया होता , गर कद्र कर लेती तुम अपने जज्बात की । जब मारूफ हो अपने इश्क़ का दास्तां , तो एहतियाज नहीं इतने एहतियात की । ख़लिश रह गई थी एक सीने में , कि इद्राक थी तुझे मेरे हालात की । ख़िज़ां ना होती हमारे इश्क़ की कहानियां , लेकिन बद्तमीज़ी ही मैंने इफ्रात की । टकराई थी नज़रें जब कभी , टकराई थी सांसे जब कभी , कह दिया था तब भी तुमने मुस्कुरा कर , अभी नहीं लेकिन "फिर कभी" । फ़िर कई बोसे तेरे होठों पर , होगी जब सामने तुम कभी , अबकी मत कहना तुम मुझे , गाल छूने पर " फिर कभी "। एक बार वक़्त निकल जाने पर , लौट कर आएगा ये " फिर कभी " नहीं । आओ हो जाए हमसफ़र जिंदगी के राह में , वर्ना अभ