Posts

Showing posts from September, 2019

फिर कभी

ठीक है, तुम रोज़ बातें ना करो मुझसे , लेकिन करती रहा करो मुझसे बातें कभी । बिन तेरे , बीत गई है रातें कई  , और बीत जाएंगी ये तारीखे कभी । वक़्त लंबा गुज़र गया है , आओ हम रूबरू हो जाए कभी । मिलने पर तुम कहा करती थी , अभी नहीं लेकिन "फिर कभी" । सुनाए क्या दास्तां हम उस रात की , बस एक थी आरज़ू वो मुलाकात की । ये ' फिर कभी' का सिलसिला थम ही गया होता , गर कद्र कर लेती तुम अपने जज्बात की । जब मारूफ हो अपने इश्क़ का दास्तां , तो एहतियाज नहीं इतने एहतियात की । ख़लिश रह गई थी एक सीने में , कि इद्राक थी तुझे मेरे हालात की । ख़िज़ां ना होती हमारे इश्क़ की कहानियां , लेकिन बद्तमीज़ी ही मैंने इफ्रात की । टकराई थी नज़रें जब कभी , टकराई थी सांसे जब कभी , कह दिया था तब भी तुमने मुस्कुरा कर , अभी नहीं लेकिन "फिर कभी" । फ़िर कई बोसे तेरे होठों पर , होगी जब सामने तुम कभी , अबकी मत कहना तुम मुझे , गाल छूने पर " फिर कभी "। एक बार वक़्त निकल जाने पर , लौट कर आएगा ये " फिर कभी " नहीं । आओ हो जाए हमसफ़र जिंदगी के राह में , वर्ना अभ

यह इक्कीसवीं सदी का भारत है

देश चरित्र कहां जा पहुंचा दुष्कर्मियों के सायों में , या सत्ता पर काबिज बैठे अपराधियों के छायों में । यह इक्कीसवीं सदी का भारत है पूजनीय गाय काटी जाती है , बंद कमरों में लाचारी वो औरत बांटी जाती है । ये कैसे नेता चुने गए जो महफ़िल में होया करते है , सात सितारा होटल में एसी में सोया करते है । वोट धर्म पर मांगे केवल जनता तो कबसे रूठी है , सत्तर सालों से शासित वो शासन सत्ता झूठी है । वर्ष कई बीते बस जनता को लूटा जाता है , अपराधी के साथ बैठ पीड़ित को सूता जाता है । आठ माह या आठ वर्ष उस बच्ची की क्या गलती है , निर्मम क्रूर उन हैवानों की हवस की भूख में जलती है ।

आओ बोल दे वो बातें जो कबसे ज़ुबां पे लाए बैठे है ।

एक दर्द है दिल में कबसे दबाए बैठे है  , इश्क भी उनसे कबसे जताए बैठे है , वो बाखबर हो कर भी बेखबर है , हम ही उनसे सारे वायदे निभाए बैठे है । हारे तो उसको पहले ही दिन थे यारों , लेकिन अब भी उसको इश्क़ में जिताए बैठे है । माना की वो सबसे खूबसूरत नहीं लेकिन , दिल तो हम अपना उनसे ही लगाए बैठे है । वो होठों के ऊपर तिल , और उसकी मुस्कुराहट , इन्हीं पर तो हम अपने होश गवाए बैठे है । और वो आंखों का काजल , जुल्फों का बिखरना , भीगे बालों पे तो उसके अपने दिल लुटाए बैठे है । अश्क भी उसकी यादों के साए में , इन आंखों पर कितने सितम ढहाए बैठे है । गाल पे उसकी इक बोसे की खातिर , यहां कितनों के हम दिल जलाए बैठे है । मिलता है उसके छुअन से सुकून मुझको , कबसे हम इन उंगलियों को तरसाए बैठे है । जानता हूं कि तुझको भी मिलता है सुकून बात करने पर , आओ बोल दे वो बातें जो कबसे ज़ुबां पे लाए बैठे है ।