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Showing posts from February, 2021

लोगों खातिर बैसाखियां बनाते हुए ।।

लगेगा दिल खुद्दारियां दिखाते हुए , ख़ुद के घर जले बस्तियां जलाते हुए , खुद के पैर हम भूल बैठे हैं , लोगों खातिर बैसाखियां बनाते हुए । जिंदगी भर राह में कांटे बिछाए थे , क्यों रो रहे फ़िर अर्थियां उठाते हुए ? दिल के सारे राज़ वो खोल बैठे है , चेहरे से बेताबियां छुपाते हुए । डूबा दोगे निबाह साथ तुम " गुमनाम " , लोगों से अपनी नेकियां गिनात हुए ।।

घाव कुछ जियादा है क्या

इक अरसे बाद मिल रहे कोई इरादा है क्या ?  आंखें नम है घाव कुछ ज़ियादा है क्या ? कहां से ये नज़रे झुकाना सीख गई तुम , ज़िन्दगी में दूसरा शहजादा है क्या ? दरीचा खोल कर हाथ क्यों हिला रही , विदा करने का ये कायदा है क्या ? शतरंज की बिसात पर राजा क्यों नहीं , राजा की औकात का पियादा है क्या ? दिल , जगह और वक्त सब खाली है " गुमनाम " , इस खालीपन का कोई इस्तिफादा है क्या ??