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तबसे चेहरा तेरा ढलता जा रहा है

पैर का तल खिसकता जा रहा है , अब समुंदर गहरा होता जा रहा है , वक्त की जालसाजी में है उलझे , वक्त है और वक्त निगलता जा रहा है , इश्क़ है तो ही लब का जोड़ बिठाओ, मुंह मेरा ज़हर उगलता जा रहा है । इन इबादत की नजरों ने रुख हटाया , तबसे चेहरा तेरा ढलता जा रहा है । ये निगाहें रुखसत होना चाहती है , `गुमनाम’ बेहतर कोई ढूंढा जा रहा है ।